Bharatiya Swatantrata (भारतीय स्वतंत्रता ) |और स्वाधीनता के संघर्ष में "स्व" शब्द का गहरा अर्थ छिपा है। यह केवल आज़ादी या मुक्ति तक सीमित नहीं है, बल्कि आत्मनिर्भरता | आत्मसम्मान और सांस्कृतिक अस्मिता से भी जुड़ा हुआ है। जब भारत ने विदेशी शासन के खिलाफ विद्रोह किया | तो यह केवल बाहरी नियंत्रण से मुक्ति नहीं थी | बल्कि अपने "स्व" की पहचान को पुनः स्थापित करने की यात्रा थी । यह लेख भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में "स्व" की भूमिका | और इसके व्यापक प्रभावों को समझने का प्रयास करेगा।
हिंदी में पहला जो खड़ी बोली हिंदी का ग्रंथ लिखा गया | वो स्वामी दयानंद सरस्वती जी के द्वारा लिखा गया | सत्यार्थ प्रकाश माना जाता है | जो गुजरात की धरती से थे | हिंदी भारत की भाषा होनी चाहिए | यह विचार प्रतिपादित करने वाले महात्मा गांधी गुजरात धरती के थे | लोकमान्य तिलक महाराष्ट्र से थे | कन्हैयालाल मानिक लाल मुंशी जी भी गुजरात से थे |
क्षमा प्रसाद मुखर्जी जी बंगाल से थे |गोपालस स्वामी हैंगर जीत तमिलनाडु से थे |और विरोध करने वाले पंडित जी उत्तर प्रदेश से थे | अन्यथा वह समस्या कभी पहले ही बेहतर ढंग से समाधान हो जाता | और सिर्फ हिंदी का विषय नहीं है | समस्त भारतीय भाषाओं के अंदर में भी स्व का तत्व है | हमारे यहां युद्ध का भी स्वरूप होता है | जो हमारे मुनि ऋषि ओने महाभारत में उल्लेख किए हैं | तो मैं इस भाषा के विषय से ही उसका एक संबंध स्थापित करने का प्रयास करता हूं |
Bharatiya Swatantrata हमारा भाषाओं के माध्यम से कैसे स्थापित होता है |
भाषा हमारे मन में क्या विचार लाती है और हमारे स्वः से कैसे दूर ले जाती है |और वह स्वः हमारा भाषाओं के माध्यम से कैसे स्थापित होता है | जैसे अभी हमने युद्ध का वर्णन किया आप सब ने वो कहावत सुनी होगी | एवरीथिंग इस फेर इन लव एंड वॉर | और इसका यदि हिंदी में ट्रांसलेशन हो या भारतीय भाषा में ट्रांसलेशन हो | तो कहते हैं जंग और इष्क में सब कुछ जायज है |
मगर मैं कहना चाहता हूँ ना जंग हिंदी और भारतीय शब्द है ना इश्क भारतीय शब्द है ना जायज भारतीय शब्द है | किसी भारतीय भाषा में संस्कृत हो हिंदी हो गुजराती हो मराठी हो बांग्ला हो आपने कभी कोई ऐसी कहावत नहीं सुनी होगी की युद्ध और प्रेम में सब कुछ अनुचित उचित है | क्योंकि यह हमारे स्वर का तत्व होता ही नहीं है |हमारे यहां प्रेम त्याग का प्रतीक है और युद्ध का धर्म था | लोग प्रेम में या तो प्राप्ति हो जाती है | तो एक आगे जो किसीने पंक्ति में लिखा था वो मुझे बहुत उपयुक्त लगता है |
Bharatiya Swatantrata में प्रेम, प्रेम जव सफल और असफल हो जाता है |
आजकल तो युवक युवतियों में बड़ा प्रेम का भाव उत्पन्न होता है |अब उसके दो परिणाम होते हैं अगर प्राप्ति हो गई तो वो हाल की तरह हो जाती है यानी शराब के नशे की तरह |और यदि उसमें असफल हो गए तो वह अनुभवों के कड़वे रस का एक प्याला हो जाता है | परंतु उन्होंने लिखा भारतीय परंपरा में जो हमारा स्व था उसमें प्रेम क्या था |
बे मुर्दे होंगे प्रेम जिन्हें अनुभव रस का कटु प्याला है |
वे रोगी होंगे प्रेम जिन्हें सम्मोहन कारी हाला है |
में बिदग्ध होकर जान लिआ बो अंतिम रहस्य पहचान लिया,
मैंने आहुति बनकर देखा ये प्रेम यज्ञ की ज्वाला है |
तो हमारे यहां यह था वैसे ज्वाला में जलने वाले लोग आजकल भी बहुत सारे दिखाई पड़ रहे हैं | जो अपने पोस्टर में जलता हुआ दिखाई दे रहे हैं | परंतु मैं उनसे कहना चाहूंगा हाल हम जलते हैं मगर किस हिप से जलते हैं यह आपकी बुद्धि से परे है | क्योंकि हमने बचपन में शाखों में वह गीत सुना | और आगे जलने का उल्लेख है |
हम केशव के अनुयायी हैं, हमने तो बढ़ाना सिखा है |
अंधकार में बंधु भटकते, पंथ बिना व्याकुल दुख सहते,
पथ दर्शन दीपक बन, तिल तिल हमने तो जलना सिखा है |
जब कर्ण और अर्जुन का युद्ध हो रहा होता है |
अब युद्ध जिसका प्रतिपादन उन्होंने किया, युद्ध का धर्म क्या था | युद्ध से Bharatiya Swatantrata महत्त्व कैसे प्रतिपादित होता है | मैं उदाहरण देना चाहता हूं | महाभारत के युद्ध का उन्होंने उल्लेख किया | महाभारत में प्रसंग आता है की जब कर्ण और अर्जुन का युद्ध हो रहा होता है | तो नागों का राजा विश्व सेन कर्ण के रथ के पास पहुंचता है |और उसके तरकश में जाकर कहता है की मेरा भी अर्जुन उतना ही बड़ा शत्रु है जितना तुम्हारा शत्रु है | बस अपने बाण पर चढ़कर मुझे अर्जुन के रथ तक पहुंचने दो और मैं इसको डंस कर समाप्त कर दूंगा | मेरा भी प्रतिशोध पूरा और तुम्हारे शत्रु की मृत्यु |
मगर एवरीथिंग इस फेर इन लव एंड वॉर | जंग में सब कुछ जायज होने की कहावत वालों को समझना चाहिए | की कर्ण क्या जवाब देता है | कर्ण जो कहता है उसमें बहुत बड़ा ट्रक्स है |वो कहता है तेरी सहायता से जित तो में अनायास पा जाऊंगा | आने वाली मानवता को लेकिन क्या मुख दिखलाऊंगा |
आगे की पंक्ति और महत्वपूर्ण है | जो भारतीय परंपरा के स्व भाब कहती है | उसमें सारा ट्रक्स है | वो कहता है अर्जुन है मेरा शत्रु किंतु वह सर्प नहीं नर ही तो है | संघर्ष सनातन नहीं शत्रुता इस जीवन भर ही तो है | जब हम जन्म जन्मांतर में बिस्वास करते हैं तो धर्म अलग हो जाता है | तो वो कहता है अगला जीवन किस अर्थ हो फिर हो देशात बिगाड़ू में | सांपों की जाकर शरण सर्प बन क्यों मनुष्य को मरून मैं | जा भाग मनोज का सहज शत्रु मित्रता ना मेरी का सकता | मैं किसी हेतु ये कलंक अपना सेर पर नहीं लगा सकता |और यह सिर्फ हमारी कथनों में नहीं रियल हिस्ट्री में है |
युद्ध, जीवन मारन का प्रश्न नहीं होता था |
केरल में जब पुर्तगीज आते हैं तो पदनाभ मेनन जी ने अपनी जो किताब हिस्ट्री ऑफ केरल में लिखा है की वहां के राजाओं ने जब पुर्तगालियों से युद्ध की बात कही | तो एक्जेक्टली वही बात कह रहे थे |उन्होंने कहा भाई युद्ध एक अलग मैदान में होगा युद्ध में हम ड्रम बजाएंगे | फिर उसके बाद आपसे युद्ध प्रारंभ होगा | किसी आम व्यक्ति को मारा नहीं जाएगा | और इस प्रकार से उन्होंने पूरा जो विषय बताया तो portugariyon को लगा की ये युद्ध की बात कर रहे हैं या किसी खेल की बात कर रहे हैं |
और ये ऐसा ही नहीं उत्तर भारत में राजस्थान में Karnel Jems Stud थे | जिसने लिखा Analysis and Activities of Rajasthan उनकी हर बात से हम सहमत नहीं है |मगर उन्होंने एक बात लिखी की भारत के जो हिंदू राजा थे इनके लिए ऐसा लगता है की युद्ध जीवन मारन का प्रश्न नहीं होता था | वो शक्ति प्रदर्शन के टूर्नामेंट की तरह उसको लेते थे | और किसी को मारते नहीं थे |
और अंत में वो लोग जो विजयी हो गया उसके उपरांत चले जाते थे | यह हमारे यहां युद्ध का धर्म था, Bharatiya Swatantrata था | इसीलिए आप कहेंगे चलिए यह तो मेडिबल हिस्ट्री थी | मॉडर्न हिस्ट्री में आइए आज भारत की सेना यु एन पीस कीपिंग फोर्स की सबसे एक्टिव आर्मी में से एक है | यह उतना महत्वपूर्ण नहीं है | महत्वपूर्ण यह है की भारतीय सेना जो यु एन पीस कीपिंग फोर्स में जाती है | उसके खिलाफ ह्यूमन राइट्स के जो मामले आते हैं | वो कोई भी मामले नहीं आते | अन्य सेनाओं के सामने मामले ज्यादा आते हैं | क्यूँ की वो युद्ध की मर्यादा के उसे स्वर से निकले हुए हैं |
Bharatiya Swatantrata में हमारे स्वतंत्र में स्व का भाव कितना है |
जब हम स्व को समझने का प्रयास करें | तो सबसे पहले तो जैसा की बताया Bharatiya Swantatrata | हमें स्वाधीनता मिली पर हमारे Bharatiya Swatantrata में स्व का भाव कितना है |और तंत्र में स्व का भाव का सबसे पहले तीनों भाव या अभाव वहां से प्रारंभ हुआ | जो हमसे कहा गया की हम एक देश तो थे ही नहीं | कभी हम तो दूसरे लोग आकर सेटल होते चले गए और हमारे यह राष्ट्र बनता गया | मुझे याद है बचपन में जब राजीव गांधी जी प्रधानमंत्री थे | लोगों को याद होगा दूरदर्शन के ऊपर एक वो आता था |
बार-बार एक प्रोग्राम के बाद एक शेर सुनाया जाता था | सर जमीन हिंद पर एक्वा में आलम के फिराक काफिले बसते गए हिंदुस्तान बनता गया | जैसे हम कोई पराय थे, हम कोई मिले थे, हम कोई दर थे की लोग आकर सेटल होते चले गए | और हिंदुस्तान बनता गया |
इस वक्त का भाव नहीं हमारे स्व का भाब क्या है |जैसे हिंदी के प्रख्यात कवि जयशंकर प्रसाद जी की एक पंक्ति में कहता हूं हमारा राष्ट्र का स्वभाव ये है | हिमालय के आंगन में प्रथम, उसे किरण का दे उपहार, उषा ने हंस अभिनंदन किया | और पहनाया हीरक हार | जगे हम लगे जगाने विश्व लोक में फिर फैला आलोक | व्योम उत्तम पुंज हुआ तब नष्ट, निखिल संस्कृति हो उठी अशोक | तो संपूर्ण विश्व को ज्ञान यहां से दिया | वो हमारा राष्ट्रीयता थी वो हमारा स्व का तत्तो था | तो पहला तो राज्य का स्व तत्तो दूसरा हम ये देश थे क्या |
Bharatiya Swatantrata, भारतीयों को जानना चाहिए बास्तब में भारत क्या है |
बहुत से लोग ये कहते हैं की भाई भारत क्या है | एक पुस्तक मैंने पढ़ा वो कहते हैं इंडिया इसे नॉट ए ज्योग्राफिकल एंटी टी ,यू विल से, इट इस मोर फाइनर एंड सॉफ्टनर देन दाट, तो उससे फाइनर एंड सॉफ्टनर क्या हिस्टोरिकल एंटी टी ,कहते नो इट्स मोर फाइनर एंड सॉफ्टनर देन दाट, इट इस मोर फाइनर इस कल्चरल, नो इट्स मोर फाइनर देन दाट, देन इट इस रिलिजियस, नो इट्स मोर फाइनर देन दाट,देन इट इस स्पिरिचुअल, नो इट्स मोर फाइनर देन दाट तो पूछता है की इस स्पिरिचुअल से ज्यादा फाइनल क्या है | तो कहते हैं की इस स्पिरिचुअल्स ज्यादा फाइनल इसलिए है की जैसे दो न्यूक्लियस जब एक दूसरे से मिलते हैं | न्यूक्लियर बम का जो फॉर्मूला है उसमें दो न्यूक्लियस मिल के हाइड्रोजन के दो मिल के हीलियम बनाते हैं |
उसी से सूर्य बनता है तो एक प्रचंड विस्फोट होता है और इस कारण से वह रेडियो एक्टिव वेव्स उसे क्षेत्र में विद्यमान हो जाती हैं | वैसे ही उन्होंने कहा इस देश में हजारों वर्षों में हजारों लोगों ने अपनी आत्मा का परमात्मा के साथ फ्यूज़न करने में सफलता हासिल की है | और उसे प्रचंड विस्फोट की तरंगे इस धरती पर विद्यमान हैं | आप जाकर इसको समझ पाएंगे तब आप जान पाएंगे की ये राष्ट्र क्या है |और उसकी स्वा की अनुभूति कर पाएंगे नहीं तो सिर्फ बिल्डिंग देख के चले आएंगे | इसलिए जब हम उस Bharatiya Swatantrata का स्व त्तत्त्व की बात करते हैं और वो कैसे संपूर्ण विश्व में स्थापित हो जाता है | जब भारत को स्वतंत्रता मिली तो जब सोमनाथ के मंदिर के निर्माण की बात हुई और सरदार पटेल ने क्या कहा |
Bharatiya Swatantrata में अपने विचार और स्वभाव में पूर्णता भारती होना चाहिए |
की जब-जब भारत स्वतंत्र हुआ है तब तब सोमनाथ की अटालिकाओं ने गगन को छुआ है | भारत स्वतंत्र ये दोनों का स्वाधीन हुआ 15 अगस्त 47 को मगर मैं एक बात का रहा हूं ये मैं नहीं का रहा हूं कोई दूसरा का रहा है इसलिए इसको कोई अन्यथा ना लें | 18 मैं सैन 2014 को सन्डे ट्रिब्यून इंग्लैंड में लिखा आपने आर्टिकल में | की 16 मैं 2014 शुड बी कंसीडर्ड अस डी दे इन विच ब्रिटिश फाइनली लेफ्ट इंडिया |
क्योंकि उन्होंने कहा की उसके बाद बहुत लंबे समय तक ऐसी विचारधारा का शासन रहा ऐसी व्यवस्थाओं का शासन रहा जो ब्रिटिश कोलोनियल लिगसी का ही प्रतिनिधित्व करती थी | पहली बार एक ऐसे विचार के हाथ में सत्ता आई है | जिसके ऊपर कोई ब्रिटिश कॉलोनी लिगेसी का प्रभाब नहीं |जो अपने विचार और स्वभाव में पूर्णता भारती है |
जब अपना सर श्रद्धा से झुकाते हैं |
इसलिए उन्होंने माना और देखिए जब ब्रिटिश फाइनली लेफ्ट हुए तो क्या हुआ सोमनाथ बना था 1948 के पास | और फिर जाके काशी विश्वनाथ का कॉरिडोर बना | फिर श्री राम जन्मभूमि की पताका लहराई |जब काशी विश्वनाथ का कॉरिडोर हुआ | जिसका प्रधानमंत्री जी ने उद्घाटन किया |
बहुत से लोगों ने क्या कहा | क्या आवश्यकता थी उसको बनाने की | इस चीज से देश का क्या लाभ है | देखिए जब आप सोमनाथ में अपना सर श्रद्धा से झुकाते हैं | तो वो श्रद्धा भाव काशी विश्वनाथ से स्वयं जुड़ता है | तो जब सोमनाथ बने थे | तो काशी विश्वनाथ बनना हीं था | और इतना ही नहीं जब आप काशी विश्वनाथ में अपना सर श्रद्धा से झुकाते हैं तो उत्तर में अमरनाथ के साथ भी भावना वैसे ही जुड़ती है | दक्षिण में रामेश्वरम के साथ भी जुड़ती है | पश्चिम में सोमनाथ के साथ भी जुड़ती है | पूर्व में मल्लिकार्जुन के साथ भी जोड़ती है | और इतना ही नहीं वह काठमांडू के पशुपतिनाथ के साथ भी जुड़ती है |
ब्रह्मांड का निरंतर सृजन और विनाश शिव के ब्रह्मांडीय नृत्य की तरह है |
पाकिस्तान के कटसरै के साथ भी जुड़ती है | कैलाश मानसरोवर के साथ भी जुड़ती है | वह हमारा हिस्सा राजनैतिक दृश्य कहीं भी चला गया हो | वो इस राष्ट्र की चेतना अखंड यथावत रहती है | और यदि आप लोग चेक करना चाहे तो अभी भी चेक कर सकते हैं | चेंगज खान और जितने मंगोलिया के मकबरे हैं | उनके बाहर आप जाकर उसकी फोटो देखेंगे तो त्रिशूल लगा हुआ है | और श्रृंगी भी लगी है मकबरे के बाहर | क्यों आप किसी से इतिहास पूछिए मंगोलिया के धर्म क्या था, बोलेंगे तेद्रीन | तेद्रीन और कुछ नहीं था तंत्र शब्द का अपभ्रंश तेद्रीन है | और तंत्र के देवता भगवान शंकर हैं | इसलिए हम मकबरे के बाहर त्रिशूल लगा है वहां तक जाके हमारा भाव जुड़ता है | Bharatiya Swantantrata का स्व बहां भी है |
और इतना ही नहीं अभी हिट्स बोसॉन तक दुनिया पहुंची हिट्स बोसॉन जिस लेबोरेट्री में खोजा गया वो थी यूरोप की सैन लेबोरेट्री |और सैन लेबोरेट्री की लॉबी में आप जाइए तो नृत्य करते हुए भगवान शंकर की नटराज की मूर्ति राखी हुई है | और जिसके नीचे ऑस्ट्रिया साइंटिस्ट फिर से कैमरा का कोड़ लिखा हुआ है (Now the Science has concluded that the constituent perpetual creation and destruction of the Universe is like the Cosmic dance of Shiva.)अब विज्ञान ने निष्कर्ष निकाला है कि ब्रह्मांड का निरंतर सृजन और विनाश शिव के ब्रह्मांडीय नृत्य की तरह है |
तो हम इस प्रकार संसार से जाकर जुड़ जा हैं | और हमारे जितने भी देवता हैं जितने भी प्रतीक हैं जैसा की माननीय ने कहा हम अंदर की यात्रा की तरफ जाते थे | अंदर की यात्रा की तरफ क्यों जाते हैं | और उसके जाने से फर्क क्या पड़ता है |
Bharatiya Swatantrata इस देश में क्रांति नहीं होती, इस देश में संक्रांति होती है |
उसके कारण से हमारे एडमिनिस्ट्रेशन सोसाइटी मेंडिप्लोमेसी क्या फर्क पड़ता है | हमारे यहां जब सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण में जाता है | तो उसको क्या कहते हैं, संक्रांति कहते हैं | पर अगर हम पॉलिटिकल देखें तो दुनिया के जितने बड़े-बड़े देश हैं | हमने हिस्ट्री में पढ़ा होगा हर देश में एक ना एक बार क्रांति जरूर हुई है |हमने चीन की क्रांति पढ़ी | रूस की क्रांति पड़ी फ्रांस की क्रांति पड़ी | ब्रिटेन की क्रांति पड़ी अमेरिका की क्रांति पड़ी | परंतु बड़े देशों में एकमात्र भारत है जहां कभी क्रांति नहीं हुई | क्यों , क्योंकि क्रांति वहां होती है जहां बाहर सब कुछ प्राप्त करना होता है |सब कुछ मटेरियल में खोजना होता है |
परंतु जहां अंदर की यात्रा करते हैं | तो जब हमारी मन की जो धारा है वो नीचे की तरफ होती है | जब भी आप कभी ध्यान लगाए तो आप देखें बड़ा पॉजिटिव चीजों पर आपका ध्यान नहीं जाता है | नेगेटिव चीजों की तरफ जाता है | मनुष्य पे यदि मर्यादा और नियम का दबाव ना हो तो वो पांचवी प्रवृत्तियां की तरह भागता है | यानी बलपूर्वक जो चाहे सुख वो की चीज इकट्ठा कर ले | जब हमारी धारा जो डाउनवार्ड है वो अपवार्ड होती है तो हमारे अंदर क्या घटित होती है संक्रांति | इसलिए इस देश में क्रांति नहीं होती इस देश में संक्रांति होती है | क्रमश.........
Part1:- Bharat ka swatantrata aur swadhinata ka swo kya hai ?
Part2:-Bharatiya Adhyatmikta Bapsi hoga Jabswo ku Pehechanenge.
Part3:-Bharatiya Baigyanikata, Adhyatma aurVideshi Manasikata.

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