Bharatiya Adhyatmikta Bapsi hoga Jab swo ku Pehechanenge.

Bharatiya Adhyatmikta (भारतीय अध्यात्मिकता), यानी भारतीय आत्मा | भारत की सांस्कृतिक और दार्शनिक धरोहर में गहरे रूप से जुड़ी हुई है। यह एक समग्र दृष्टिकोण है | जो जीवन आत्मा और ब्रह्मांड को समझने के लिए है | और यह आंतरिक शांति, ज्ञान और आत्मविश्वास की ओर ले जाता है। आज के समय में, जब साधारण रूप से भोग-विविधता | और भौतिकता की ओर ध्यान दिया जाता है | तब भारतीय अध्यात्मिकता की पुनरुद्धार तभी संभव है | जब व्यक्ति अपने सच्चे स्वरूप को पहचाने।

आत्मविश्वास और आत्म-परिचय इस यात्रा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं | क्योंकि अपने आप को पहचानकर ही व्यक्ति भारतीय परंपराओं के गहरे अध्यात्मिक क्षेत्रों को समझ सकता है। यह लेख यह विचार करेगा कि कैसे अपने आप को पहचानकर भारतीय अध्यात्मिकता को पुनः जीवित किया जा सकता है | और किस प्रकार यह व्यक्ति के आत्मविकास  | और सामाजिक मेलजोल में योगदान दे सकता है।

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Bharatiya Adhyatmikta में राधा कृष्ण का संगम क्या है |

संक्रांति का यह भी अर्थ समझिए | गुजरात की धरती पे भगवान कृष्ण को विशेष पूजा जाता है | आपने कभी ध्यान दिया भगवान कृष्ण चूंकि काले हैं | जब आप ध्यान लगाते हैं तो आपकी आंखों के सामने श्याम वर्ण होता है | और जब आप गहराई से उसे चेतना में उतरते हैं और आपकी मन की धारा जो निरंतर डाउनवार्ड्स है | उसको कंट्रोल करने में सफल होते हैं | और उसको अपवर्ड करते हैं तो धारा का उल्टा क्या होता है | 

बस यही राधा कृष्ण का संगम है |यानी जब आप जाकर अंदर ध्यान लगाते हैं | और आपकी प्रवृत्तियां उर्दू गामी हो जाती हैं | तब आपको वास्तविक आनंद की अनुभूति होती है |और अंदर जाकर क्या प्राप्त होता है | देखिए भगवान कृष्ण ही जो है वो राधा कृष्ण के तो प्रतीक है ही | परंतु इसी के साथ-साथ एक बात और देखिए उनको मक्खन बहुत पसन्द है | 

Bharatiya Adhyatmikta में   कृष्ण को मक्खन क्यों प्रिय है |

वो हंडिया में से मक्खन खाते हैं | और मिट्टी की हांडी को तोड़ के उससे मक्खन निकाल के खाते हैं | और फिर वो निष्काम कर्म के प्रतीक भी बनते हैं | इन सब के पीछे हमारी चेतना का वह रहस्य है | की मक्खन क्यों प्रिय है | हमारा मन दूध की तरह है | हम पानी में मिला देते हैं तो दूध पानी में मिल जाता है, नष्ट हो जाता है | परंतु स्थिर कर लें वह दही बनता है | 

दही को मंथ ले तो मक्खन बनता है | मक्खन को पानी में डालिए तो वो मिलता नहीं है | तो निष्काम कर्म व्यक्ति संसार में आकर तभी कर सकता है | जब अपनी चेतना को स्थिर करकर मंथ कर उसमें से वनी निकलने में सफल हो जाए | इसलिए भगवान कृष्ण निष्काम कर्म के प्रतीक है | 

Bharatiya Adhyatmikta में कृष्ण के साथ इतना हजार गोपिकाएँ थी का रहस्य |

और इतना ही नहीं अगर आप यह देखें अब कभी-कभी बहुत से लोग प्रश्न उठाते है ना | की भगवान कृष्ण के इतना हजार गोपिकाएँ थी | तो इसके ऊपर टीवी मैं,फंक्शन में ,सभा में, डिबेट होता है | एक डिबेट थी जिसका टॉपिक था की इंडियन कल्चर फर स्टेप डेमर्केट्स बिटवीन में एंड वुमेन | तो इसके पक्ष में बोलने में बहुत मिल जाएंगे एग्नेस्त में बोलना पड़ा मुश्किल था तो | उसमें revertling पैनल भी था | यानी आपको खाली डिबेट कर के चले नहीं आना है प्रश्नोत्तर भी होंगे तो प्रश्नोत्तर करने वाली एक महिला थी उन्होंने प्रश्न किया की व्हाट यू हैव टू से अबाउट डी मोर दैन 10000 वाइफ ऑफ भगवान कृष्ण | 

16108 वेद में ऋचाओं की संख्या है | 

कथा बाचक ने कहा नो ही वाज नॉट हेविंग 10000 ही वाज हेविं 16108 तो उन्होंने कहा यस यस what ever the figure is,बट व्हाट इस डी आंसर | कथा बाचक ने कहा आंसर लाइज इन डी फिगर 16108 | 16108 वेद में ऋचाओं की संख्या है | 

और सभी गोपियों के साथ एक साथ भगवान कृष्ण जब रस करते हैं | इसका अर्थ हुआ किसी एक रिचा को लेकर आप ध्यान लगाकर गहरे चेतना में उतारिए | तो उसी आनंद की अनुभूति होगी | जो किसी दूसरी रिचा के साथ दूसरे व्यक्ति को हो रही होगी | एक ही ब्रह्म सभी में उदभासित हो रहा होगा | और ये मैं ऐसे ही नहीं का रहा हूं | सूरदास ने लिखा है बेद रिचा भाई गोपी का हरि सन की वो बिहार | यह मैंने इसलिए कहने का प्रयास किया | की हमारे स्व के तत्व में इतनी गहराई है | की कई बार हमें उसकी व्याख्या नहीं पता होती | और इस कारण से हम भ्रमित हो जाते हैं हम विचलित हो जाते हैं | और हम दूसरी चीजों की तरफ डायवर्ट होने होते हुए चले जाते हैं | 

Bharatiya Adhyatmikta में रावण के दश सर का रहस्य |

इसलिए हमें यह भी समझना होगा की हमारे स्व का मूल तत्व क्या था |  जब तक हम परिधि पे रहते हैं तब तक हम वास्तविक चेतना की प्राप्ति नहीं कर पाते हैं | बाहर अगर हम मटेरियल में है | जैसा की अभी  मटेरियल में हम आनंद खोज रहेहे | कोशिश करेंगे तो संघर्ष ही संघर्ष होगा | और उसे संघर्ष का अंत नहीं होगा | संघर्ष का अंत नहीं है इसका आधार कहां पर निहित है | आपने राम रावण का संघर्ष सुना होगा | रावण के 10 सर थे  एक सर काटता था दूसरा उभरा हुआ आता था |

भगवान भी उसको रोक नहीं सकते थे | और यह 10 सर क्यों थे रावण के | 15-20 भी तो हो सकते थे | 25-30 भी हो सकते थे और अगर 10 ही सर थे | तो उसका नाम दशानन क्यों था, 10 मुख वाला क्यों था, वो 10 शीश,10 ग्रीब, 10 धर दसो उदर कुछ भी हो सकता था | वो 10 का अर्थ था 10 इंद्रिय और दशानन मतलब 10 इंद्रियों का खुला हुआ मुख | extrover टेंडेंसी ऑफ ऑल डी tendences,दश इन्द्रिओं कि बहिर्मुखी पिपाशा | 

Bharatiya Adhyatmikta में रावण के सर कट्टे रहते हैं उगते रहते हैं |कारण क्या है ?

एक सर काटता है दूसरा उगता है |इसका अर्थ हुआ किसी इंद्रीयों की एक इच्छा पुरी करिए इमीडीएटली इट विल गेट रिप्लेसिड बाई आदर एन्ड गड केनोट स्टोप इट | भगवान भी नहीं रोक सकते | रुकेंगे कैसे नाभि पर जाकर जब ईश्वरी तत्व का आघात होगा | इस का अर्थ क्या हुआ आप बाहर परिधि पे घूमते रहिए संतुष्टि कहीं नहीं है | संतुष्टि केंद्र में जाकर है |और यह सिर्फ ऐसे नहीं है अगर हमारे यहां अलजेब्रा ज्यामिति ट्रिगोनोमेट्री और मैथमेटिक्स खोजी गई | तो आपने कभी सोचा की सर्कल को आप देखिए तो सर्कल के सरकम्फ्रेंसेस पे घुमि तो अंत कभी नहीं मिलता है |

एक चक्कर घूम लीजिए दूसरे चक्कर का रास्ता सीधे दिखने लगता है | यानी परिधि पर जब तक आपकी चेतना घूमती है अंत कभी नहीं मिलता है | सर्कल का मूल समझ में आता है तो आप सर्कल के केंद्र में जाते हैं | इसलिए रावण के सर कट्टे रहते हैं उगते रहते हैं | जब नाभि पर जाकर उसका प्रभाव होता है तब जाकर उस पर वास्तविक नियंत्रण आता है | तो हमारे यहां जितने भी Bharatiya Adhyatmikata कथानक थे | वह गहरे आध्यात्मिक के भी प्रती थे | अब यदि हम इसको वास्तविक अर्थों में देखने का प्रयास करें | कई बार लोग कहेंगे साहब ये तो बहुत पुरानी बात आपने मेथेलॉजिकल का दी | पहले तो बात mythology ऐसी कोई चीज ही नहीं है |

Bharatiya Adhyatmikta में  मॉडर्न साइंस और अध्यात्म |

हमारी हर चीज वर्तमान समय में यथावत कनेक्टेड रहती है | परंतु यदि हम मॉडर्न समय की भी बात कहें आज के समय की बिल्कुल लेटेस्ट साइंस की बात कहें | छोटी सी बात जैसा उन्होंने अभी क्वांटम का उल्लेख किया | तो मेरे मन में एक भाव आया यह बताइए यह लाइट है जिन्होंने फिजिक्स थोड़ी भी पड़ी होगी अभी लाइट वेव है की पार्टी है | इसको लेकर फिजिक्स में आज तक कोई चीज फाइनल नहीं हो पाई | कारण क्या है की जब ये किसी पानी के अंदर आप लाइट जाती है तो वो रेफरेक्शन हो के झुक जाती है |

तो इसका मतलब है पार्टिकल है | तभी मीडियम में आकर उसका पाथ चेंज हो रहा है | परंतु यदि पार्टिकल है तो स्पेस में जैसे बताया की सूर्य से 8:30 मिनट लगते हैं | तो स्पेस में वो लाइट की वेलोसिटी से ट्रेवल ही नहीं कर सकती थी | तो वहां पर वो वेव है यानी स्पेस में वो वेव है और जब मीडियम में आता है तब पार्टिकल है | अब कोई यह कहे की साहब ये तो सामाजिक अन्याय है | और इसको लेकर कोर्ट में जाकर कोई मुकदमा दायर कर दे और कहे की यह न्याय है | इसलिए इस पर दोनों को दोनों जगह मानना चाहिए की वे वेव है भी मानना चाहिए, पार्टिकल भी मानना चाहिए |

Bharatiya Adhyatmikta में अव्यक्त परमात्मा और व्यक्त आत्मा का कन्सेप्ट |

और मान लीजिए कोई न्यायाधीश भी ऐसा हो जिसने भी फिजिक्स ना पढ़ी हो | वो क दे हा बिल्कुल सही बात है | वह आज से मैं आदेश करता हूं की दोनों जगह वेव माना जाएगा पार्टिकल भी माना जाएगा | और कुछ सामाजिक संगठन आकर उसका उत्सव मनाने लगे हैं | ऐसा ही कुछ होता है | परंतु समय था जब कहते थे की भाई साबरी माला में स्त्रियों का प्रवेश रुका था | तो एक बार इसके ऊपर टीवी डिबेट हो रहा था | 

ये सबसे बड़ा डिस्ट्रिक्टमिनेशन है ऐसा कैसे | किसीने कहा तो सिमेटिक देखने की विधि है | यह बताइए जब नवरात्रों में नौ कन्याएं खिलाते तो आप यह नहीं कहते चार लड़के होने चाहिए | तो हमने कहा वहां पर उसे तत्व की प्रधानता है वहां इस तत्व की प्रधानता है | जैसे आकाश में जब वो चलता हुआ आता है तो वो वेव है | जब मीडियम में आता है तो पार्टिकल है | बस ऐसे ही समझिए आत्मा जब आकाश में है तो अव्यक्त और परमात्मा है | ये मीडियम में ए जाती है तो व्यक्त और आत्मा है | अब यह साइंस समझे तो समझ में आता है | 

Bharatiya Adhyatmikta में संपूर्ण पृथ्वी एक एकल ब्रह्मांडीय इकाई है |

हम जो पिछली बात कहें तो समझ में नहीं आती थी | केवल 75 साल पहले गांधारी के सौ घरे से 100 बेटे उत्पन्न हो गए ये कहानी थी | आज अभी तो आईवीएफ की ही बात होती थी | अब आगे की संरचना यह है की पूरा का पूरा मतलब पुरी की पुरी जीवन का क्रिएशन बाहर लेबोरेट्री में हो सके | ऐसा माना जा रहा है की 2040-50 तक यह परिस्थिति भी बन सकती सिर्फ | हम यह कहने का प्रयास करते हैं की जिसको हम साइंस कहते हैं वह कैसे बदलाव करती है | सिर्फ आज से 60 70 साल पहले यह कहा जाता था की अगर एक जगह फैक्ट्री चल रही है | और कनाडा में बर्फ की गल रही है तो यह बकवास और मूर्खतापूर्ण है |

सिंगल कॉस्मिक यूनिट |

 ऐसा बिल्कुल नहीं हो सकता | परंतु आज आप देखते हैं की हमारे एक A.C से भी नॉर्थ और साउथ पोल की बर्फ पिघल रही है | क्यों (Entire Earth is a single Cosmic Unit) सिंगल कॉस्मिक यूनिट | अगर धरती पर कहीं कुछ भी घटित होता है तो यह एक इकाई है जिसमें सब कुछ घटित होता है | एक शरीर की तरह और इसीलिए अब आप देखिए आयुर्वेद में एक सिद्धांत है की अगर कोई रोग कहीं उत्पन्न हुआ है |

तो उसका समाधान उसी की कहीं वनस्पतियों में होगा जो उसी क्षेत्र में होंगे | ऐसा क्यों सिद्धांत का आधार क्या है | जब हम र्थ को एक सिंगल यूनिट मानेंगे तो उसका आधार निकलेगा | जैसे आपके शरीर में घाव होता है  | तो क्या होता है  | पूरे शरीर के ब्लड से एंटीबॉडीज उसे घाव के चारों ओर आकर  | उसे इन्फेक्शन को रोकने के लिए सक्रिय हो जाती हैं | तो अगरर्थ एक यूनिट है | तो कोई कैसे वहां पर क्रिएट हुआ है | तो उसकी एंटीबॉडीज एनवायरनमेंट ने वहीं पर बना राखी होगी | 

भारतीय तत्व से इस सृष्टि को इस पृथ्वी को इस प्रकृति को समझना चाहिए 

परंतु यह तब समझ में आएगा | जब आप भारतीय तत्व से इस सृष्टि को  | इस पृथ्वी को इस प्रकृति को समझ सकेंगे | जब तक सेल्फ सेंटर कंपार्टमेंटल एटीट्यूड रहेगा | तब तक आप समझ ही नहीं पाएंगे | ब तक आप इस अरिसटोटल के नेचर के अनुसार चलते रहेंगे | ऑल डी एलिमेंट्स ऑफ नेचर आर फर डी सर्विस ऑफ मैनकाइंड | फ्रेंसिस बीकनेर, अरनीतिक आर डी कहते रहेंगे मेन सूड़ बिकम पाथ पोजेसर एंड मास्टर्स ऑफ नेचर | कोई कहता रहेगा मैन शुड बी एबल तू सब डू डी नेचर | 

और इतना ही नहीं | हम लोगों को तो जन्म से पहले की बात है | किताबों में हमने पढ़ा जब यूरी गगारिन स्पेस में गए | तो हमने बुक्स में क्या पढ़ा मैन हेस कन्कर्ड स्पेस | ए ऍफ़ स्पेस एनमीज तू बी कन्कर्ड | बस इसी भावना संपूर्ण प्रकृति का नाश किया | और जब हम चाहे वेदों के पृथ्वी सूक्त पर आए हैं | या माता भूमि पुत्रों हम पृथिभ्या तक आएं | 

या फिर हम ये कहें की हम जंगल को भी पूते थे | नदी को भी पूते थे पर्वतों को भी पूते थे | तो प्रकृति के साथ एक तादात में है | हमारे यहां Bharatiya Adhyatmikata मैं प्रकृति माता है | तो माता का उसके साथ पोषण लिया जाता है | उसका शोषण कभी किया ही नहीं जा सकता | यह एक स्व का विचार का अंतर था | और विचार का अंतर इतना ही नहीं है | मैं थोड़ा एक एक विषय पर और कहना चाहूंगा | क्रमश .....

Part1:- Bharat ka swatantrata aur swadhinata ka swo kya hai ?

Part2:-Bharatiya Adhyatmikta Bapsi hoga Jab swo ku Pehechanenge.

Part3:-Bharatiya Baigyanikata, Adhyatma aurVideshi Manasikata.



Read in English

Part 1:- Indian civilization's independence and self-reliance? 

Part 2:- Indian spirituality will return when you will recognise it.

Part 3 :- Indian science, spiritual and foreign mentality.

Part 4:- Indian culture is the source of scientific thoughts, for the whole nature.

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