Prachin Bhartiya Shiksha Vyavastha Swadhinata Purba.

Prachin Bhartiya Shiksha Vyavastha गांधी जी का दृष्टिकोण:

Prachin Bhartiya Shiksha Vyavastha भारत की शिक्षा व्यवस्था और स्वतंत्रता संग्राम के दौरान शिक्षा के महत्व को लेकर है। गांधीजी ने 1931 में गोलमेज सम्मेलन के दौरान ब्रिटिश अधिकारियों से भारत की शिक्षा व्यवस्था पर चर्चा की थी | और यह कहा था कि अंग्रेजों के आने से पहले भारत की शिक्षा व्यवस्था बहुत मजबूत और उन्नत थी। गांधी जी ने ब्रिटिश अधिकारियों के यह कहने के बाद | कि भारतीय शिक्षा व्यवस्था अंग्रेजों के बिना नहीं बन सकती, इसका विरोध किया।


गांधी जी का कहना था कि भारत की शिक्षा व्यवस्था पहले भी काफी प्रगति पर थी | और ब्रिटिश शासन ने उसे कमजोर कर दिया। गांधी जी ने अपनी यात्रा के दौरान भारतीय शिक्षा व्यवस्था की अच्छी स्थिति के प्रमाण इकट्ठे किए। लेकिन ब्रिटिश अधिकारियों ने इसका विरोध किया | और गांधीजी के पास इसका कोई प्रमाण नहीं होने का दावा किया। इसके बाद, महात्मा गांधी ने अपने करीबी सहयोगी प्रोफेसर धर्मपाल से यह कार्य सौंपा |

Prachin Bhartiya Shiksha Vyavastha के बारे में प्रोफेसर धर्मपाल का कार्य:

गांधी जी ने प्रोफेसर धर्मपाल से कहा कि वह भारतीय शिक्षा व्यवस्था के बारे में प्रमाण एकत्रित करें। प्रोफेसर धर्मपाल ने पूरे यूरोप में यात्रा की और दस्तावेज इकट्ठा किए । जिसमें यह साबित हुआ कि भारतीय शिक्षा व्यवस्था वास्तव में बहुत उन्नत थी। प्रोफेसर धर्मपाल ने 40 वर्षों तक इस विषय पर गहन अध्ययन किया ।और पाया कि भारतीय शिक्षा व्यवस्था ब्रिटिश शासन से पहले बहुत मजबूत और प्रभावशाली थी।

Prachin Bhartiya Shiksha Vyavastha के बारे में मनमोहन सिंह का वक्तव्य:

संवाद में यह भी उल्लेख है । कि भारत के पूर्व प्रधानमंत्री, डॉ. मनमोहन सिंह, ने एक बार ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में । अपने संबोधन में अंग्रेजों के प्रति आभार व्यक्त किया । विशेषकर उनके द्वारा स्थापित शिक्षा व्यवस्था और न्याय व्यवस्था के लिए। इसके परिणामस्वरूप, ब्रिटिश मीडिया में यह चर्चा हुई कि भारत अभी भी मानसिक गुलामी में है। क्योंकि उसके प्रधानमंत्री अंग्रेजों के गुणगान कर रहे थे।

विलियम एडम की रिपोर्ट:

विलियम एडम एक ब्रिटिश अधिकारी । ने भारत की शिक्षा व्यवस्था पर एक रिपोर्ट तैयार की थी | जिसमें भारतीय शिक्षा प्रणाली की उच्चतम स्थिति का उल्लेख था। कैसे विलियम एडम ने भारत की शिक्षा व्यवस्था की रिपोर्ट बनाई । और यह रिपोर्ट ब्रिटिश संसद में पेश की गई। रिपोर्ट में यह बताया गया कि भारत में निरक्षरता की दर बहुत कम थी । और शिक्षा का स्तर बहुत उच्च था।
 

ब्रिटेन के मुकाबले भारत में साक्षरता दर कहीं अधिक थी। ने भारतीय समाज की समृद्धि और आत्मनिर्भरता का कारण इसकी शिक्षा व्यवस्था को बताया था। जो भारतीय शिक्षा व्यवस्था और पश्चिमी शिक्षा के दृष्टिकोणों के बीच के अंतर को उजागर करती है। यह जानकारी इंग्लैंड और यूरोप में शिक्षा के इतिहास । और प्लेटो के विचारों की तुलना में भारतीय गुरुकुलों की शिक्षा पद्धतियों को विस्तार से दर्शाती है।

बीवी मैकॉले और भारत की शिक्षा:

बीवी मैकॉले ने भारतीय शिक्षा व्यवस्था पर टिप्पणी करते हुए कहा था। कि भारत में शिक्षा का स्तर उच्च था ।और यह समाज की समृद्धि का कारण था। उन्होंने यह सुझाव दिया कि भारतीय शिक्षा को खत्म करके ही भारत को गुलाम बनाया जा सकता था। इस संवाद में भारतीय शिक्षा की पुरानी स्थिति और ब्रिटिश शासकों द्वारा उसके विनाश की प्रक्रिया को उजागर किया गया है। यह भी स्पष्ट किया गया है कि भारत की शिक्षा व्यवस्था अपने आप में बहुत समृद्ध थी । और वह बिना किसी विदेशी हस्तक्षेप के सफलतापूर्वक चल रही थी।

1835 में भारतीय गुरुकुलों पर ब्रिटिश रिपोर्ट: शिक्षा का एक वैकल्पिक परिप्रेक्ष्य

ब्रिटिश संसद में 2 फरवरी 1835 को हाउस ऑफ कॉमन्स में एक महत्वपूर्ण चर्चा हुई थी। जिसमें भारत की शिक्षा व्यवस्था के बारे में अंग्रेजी विद्वान विलियम एडवर्ड हर्शल ने अपने निष्कर्षों को साझा किया। उनके बयान से यह स्पष्ट हुआ कि भारत में एक विशेष प्रकार की शिक्षा व्यवस्था थी । जिसे ब्रिटिश शासकों ने "गुरुकुल" के नाम से जाना। यह चर्चा न केवल भारतीय शिक्षा के विषय में थी, बल्कि ब्रिटेन के शिक्षा तंत्र की तुलना में भारतीय शिक्षा के विभिन्न पहलुओं को उजागर करने वाली थी।

भारत में गुरुकुलों की व्यवस्था एक आदर्श शिक्षण प्रणाली के रूप में सामने आती है। जहां विद्यार्थियों को न केवल धार्मिक और दार्शनिक शिक्षा दी जाती थी। बल्कि गणित, खगोलशास्त्र, धातुविज्ञान, कारीगरी जैसे व्यावहारिक और आधुनिक विषयों का भी अध्ययन कराया जाता था। इसके अलावा, यह तथ्य कि भारत में शिक्षा हर वर्ग के लिए उपलब्ध थी। एक बहुत महत्वपूर्ण पहलू है। जो भारत की प्राचीन शिक्षा प्रणाली को पश्चिमी देशों की तुलना में अधिक समावेशी और समानता पर आधारित दिखाता है।

गुरुकुल: भारतीय शिक्षा की एक अनूठी परंपरा

हर्शल ने बताया कि Prachin Bhartiya Shiksha Vyavastha में भारत में लगभग 7 लाख 32 हजार गाँवों में एक गुरुकुल था। उन्होंने गुरुकुलों को एक प्रकार के शिक्षा केंद्र के रूप में वर्णित किया। जो प्रत्येक गाँव में मौजूद थे। गुरुकुलों में विभिन्न आयु वर्ग के विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त करते थे।और यह तंत्र इतनी व्यवस्था से संचालित था कि बड़े गुरुकुलों में 20,000 विद्यार्थी पढ़ाई कर सकते थे। जबकि छोटे गुरुकुलों में केवल 200 विद्यार्थी होते थे। 1835 की रिपोर्ट में शिक्षा के विषय में बहुत सारे रोचक बिंदु हैं। जैसे कि भारत में शिक्षा का स्तर, गुरुकुलों में महिलाओं की भागीदारी और दक्षिण भारत में विशेष रूप से लड़कियों की शिक्षा का प्रतिशत।

यह स्पष्ट करता है कि भारतीय समाज में प्राचीन काल से ही शिक्षा को व्यापक रूप से प्रचारित किया गया था । और उसमें समानता की भावना विद्यमान थी। हर्शल ने यह भी बताया कि भारत में एक आचार्य (गुरु) का कार्य था कि वह बड़े समूहों में विद्यार्थियों को शिक्षा प्रदान करे। यह शिक्षा प्रणाली प्राचीन भारत में मौजूदा थी । और विद्यार्थियों को विषय-विशेष पर गहरी समझ प्रदान करने के लिए एक व्यवस्थित रूप से पाठ्यक्रम पढ़ाया जाता था। उदाहरण के लिए, गणितखगोलशास्त्रधातु विज्ञान, और चिकित्सा जैसे विषयों में अध्ययन कराया जाता था।

शिक्षा के विषय: वैदिक गणित से खगोलशास्त्र तक

हर्शल ने यह भी बताया कि भारत में वैदिक गणित को विशेष महत्व दिया जाता था। और यही गणित पश्चिमी देशों के व्यावसायिक गणित से अलग था। इसके अलावा, भारत में खगोलशास्त्र और धातु विज्ञान जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर भी शोध और अध्ययन किया जाता था। 18 विषयों में शिक्षा दी जाती थी, जिसमें सबसे प्रमुख विषय गणित था। इसके बाद खगोलशास्त्रमेटलर्जी (धातु विज्ञान), और चिकित्सा शास्त्र आते थे। जो भारत में उन्नत शिक्षा प्रणाली का हिस्सा थे।

Prachin Bhartiya Shiksha Vyavastha शिक्षा के स्तर पर पारंपरिक अंतर

हर्शल ने Prachin Bhartiya Shiksha Vyavastha में भारत में यह भी देखा कि शूद्रों (निम्न वर्ग) की संख्या दक्षिण भारत के गुरुकुलों में सबसे अधिक थी। उन्होंने यह बताया कि दक्षिण भारत में लड़कियों की संख्या लड़कों से अधिक थी। और गुरुकुलों में शिक्षा प्राप्त करने वाली लड़कियों का अनुपात लगभग 58% था । जो उस समय के लिए एक चौंकाने वाला तथ्य था।

यह भी पाया गया कि भारत में महिलाओं को शिक्षा देने के लिए केवल महिलाएं शिक्षक थीं।और पुरुषों को पढ़ाने के लिए पुरुष शिक्षक नियुक्त किए गए थे। गुरुकुलों में शिक्षकों के लिए प्रशिक्षित करने वाले केंद्र भी थे। जहां उन शिक्षकों को आवश्यक प्रशिक्षण प्रदान किया जाता था। ताकि वे गुरुकुलों में छात्रों को शिक्षा दे सकें।

ब्रिटेन का शिक्षा तंत्र और भारत की तुलना

जब हर्शल से यह पूछा गया कि ब्रिटेन में शिक्षा का क्या हाल है। तो उन्होंने इंग्लैंड के शिक्षा तंत्र पर तीखा कटाक्ष किया। उन्होंने बताया कि ब्रिटेन में अभी भी 70% लोग साक्षर नहीं थे। और वहां के स्कूलों में गणित जैसे बुनियादी विषय भी नहीं पढ़ाए जाते थे। इसके विपरीत, भारत में जहाँ 7 लाख 32 हजार गुरुकुल थे। वहां के विद्यार्थियों को 18 विषयों में शिक्षा मिल रही थी। हर्शल ने यह भी बताया कि इंग्लैंड में 16वीं शताब्दी तक कोई स्कूल नहीं थे। और तब यूरोपीय उपनिवेशों के विस्तार के साथ कुछ चर्चों के पीछे छोटे-छोटे स्कूल स्थापित किए गए थे।

प्लेटो और पश्चिमी शिक्षा की सीमाएँ

हर्शल ने पश्चिमी शिक्षा के बारे में एक दिलचस्प दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। जिसमें उन्होंने प्लेटो की शिक्षा-परिधि को उद्धृत किया। प्लेटो ने अपनी पुस्तक "द रिपब्लिक" में लिखा था कि शिक्षा केवल समाज के प्रभु वर्ग को ही मिलनी चाहिए । और राजा और उसके नजदीकी लोगों को ही इसका लाभ होना चाहिए। प्लेटो के अनुसार, शेष समाज के लिए शिक्षा की कोई आवश्यकता नहीं थी। यह विचारधारा पश्चिमी दार्शनिकों से लेकर आधुनिक काल तक बनी रही|

जबकि Prachin Bhartiya Shiksha Vyavastha में समाज के सभी वर्गों को शिक्षा देने की परंपरा थी। वहीं, प्लेटो के विचार, जो केवल शासक वर्ग को शिक्षा देने की बात करते थे। और उसके बाद के पश्चिमी दार्शनिकों के विचार, जिनमें शिक्षा केवल एक विशिष्ट वर्ग तक सीमित थी, उन दृष्टिकोणों के विपरीत भारतीय शिक्षा व्यवस्था अधिक समावेशी और लोकतांत्रिक थी। प्लेटो और एरिस्टोटल जैसे दार्शनिकों के अनुसार शिक्षा केवल राजा और उनके करीबी लोगों के लिए आवश्यक थी, जबकि भारत में यह हर व्यक्ति के लिए एक मौलिक अधिकार के रूप में देखा जाता था।

शिक्षा का उद्देश्य: ज्ञान का विस्तार

भारत में शिक्षा का उद्देश्य केवल ज्ञान अर्जन नहीं था, बल्कि समाज में व्यवहारिक दक्षता विकसित करना भी था। गुरुकुलों में छात्रों को जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में कौशल सिखाया जाता था, जैसे कि कारीगरी, चिकित्सा, और विज्ञान। इसके अतिरिक्त, छात्रों को कर्म और नैतिकता के विषयों में भी प्रशिक्षित किया जाता था, ताकि वे अपने समाज में सक्रिय और सकारात्मक योगदान दे सकें।

संडे स्कूल और बाइबल शिक्षा:

पश्चिमी देशों में संडे स्कूल्स में बाइबल की शिक्षा दी जाती है, जो सप्ताह के रविवार को होती है। इस दौरान गणित, विज्ञान या अन्य विषय नहीं पढ़ाए जाते हैं, केवल धार्मिक शिक्षा होती है।

Prachin Bhartiya Shiksha Vyavastha भारत के गुरुकुलों की तुलना:

भारत में गुरुकुलों का वर्णन किया गया है, जहां विद्यार्थियों को अधिक व्यापक और गहन शिक्षा मिलती थी। गुरुकुलों में न केवल धार्मिक शिक्षा, बल्कि शारीरिक और मानसिक विकास के लिए भी विशेष ध्यान दिया जाता था।

शिक्षा और विद्या का अंतर:

यहाँ 'शिक्षा' और 'विद्या' के बीच का अंतर बताया गया है। विद्या वह शिक्षा है जो जीवन को उच्च और आध्यात्मिक दिशा में मार्गदर्शन करती है, जैसे धर्म, न्याय, विवेक आदि। वहीं, शिक्षा वह सामान्य ज्ञान है जो गणित, विज्ञान, और तकनीकी विषयों को कवर करती है।

सर्जरी और चिकित्सा में भारतीय ज्ञान:

मै कोले के द्वारा भारतीय चिकित्सा पद्धतियों की प्रशंसा की गई, जिसमें सर्जरी और आयुर्वेद जैसी शास्त्रों की बात की गई। भारतीय चिकित्सा में, उदाहरण स्वरूप, राइनोप्लास्टी (नाक की सर्जरी) और स्किन ग्राफ्टिंग जैसी तकनीकों का उल्लेख किया गया जो 1835 में ही भारत में प्रचलित थीं।

Prachin Bhartiya Shiksha Vyavastha में महिलाओं की स्थिति:

प्लेटो और पश्चिमी समाज की विचारधारा के विपरीत, भारत में महिलाओं को उच्च शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार था, और कई गुरुकुलों और उच्च शिक्षा केंद्रों की आचार्य महिलाएं थीं।

वोटिंग और अधिकारों का विकास:

यूरोप में महिलाओं को 1950 तक कई बुनियादी अधिकारों, जैसे वोट देने का अधिकार और बैंक खाता खोलने का अधिकार, नहीं थे। वहीं, भारतीय समाज में महिलाओं को विशेष स्थान और अधिकार मिले थे।

निष्कर्ष

इस विश्लेषण से यह स्पष्ट होता है । कि Prachin Bhartiya Shiksha Vyavastha में भारत का गुरुकुल तंत्र न केवल शिक्षा के स्तर पर अलग था। बल्कि उसके सामाजिक और सांस्कृतिक ढांचे में भी पश्चिमी देशों से काफी अलग था। ब्रिटेन में जहां शिक्षा का प्रसार बहुत सीमित था । और केवल एक विशेष वर्ग के लिए उपलब्ध था। वहीं भारत में यह तंत्र जन-जन तक पहुंचता था । और सभी वर्गों के लिए शिक्षा प्रदान करता था।

भारत में प्राचीन काल में शिक्षा की जो गहरी और विविध परंपरा रही। वह पूरी दुनिया में कहीं और नहीं थी। भारतीय गुरुकुलों में शिक्षा का उद्देश्य केवल ज्ञान का प्रसार नहीं था। बल्कि उसे व्यावहारिक जीवन में लागू करने का भी था। जिससे समाज की प्रगति और व्यक्तिगत विकास सुनिश्चित होता था।

 

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