Sanatan Bharatiya Sanskruti, भारतीय सभ्यता ने ही तारों की भाषा सिखाई, नक्षत्रों को संज्ञा दी | और आकाश से गंगा के बहने की कल्पना की। भारतीय संस्कृति ने समुद्र में सेतू बनाने का आदर्श स्थापित किया।
यह बताने की कोशिश की जाती है कि विज्ञान के क्षेत्र में भारतीय दृष्टिकोण हमेशा से गहरा और व्यापक था। यह भी कहा गया कि यह जो विचार 'कल्पना' लगते हैं | वे वास्तव में इतने विराट दृष्टिकोण की मांग करते हैं कि पश्चिमी विज्ञान भी उन्हें सहजता से नहीं समझ सका।
2. Sanatan Bharatiya Sanskruti में समय की अवधारणा और भारतीय संवत:
- भारत में सबसे पुराना संवत 'ब्रह्म संवत' है, जिसकी आयु 1.97 बिलियन वर्ष बताई गई है। इसके मुकाबले पश्चिमी दुनिया में कोई भी सभ्यता 1000 वर्षों से ज्यादा का समय नहीं मानती।
- वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी भारतीय समय गणना की प्रमाणिकता को एक प्रसिद्ध कॉस्मोलॉजिस्ट, कार्ल सेकेनड, ने स्वीकार किया है। उन्होंने हिंदू ज्योतिष की गणनाओं को आधुनिक विज्ञान से मेल खाते हुए माना।
3. वैदिक गणित और विज्ञान:
- भारत में गणित केवल एक वैज्ञानिक सिद्धांत नहीं था, बल्कि यह धार्मिक ग्रंथों का हिस्सा था। आयुर्वेद भी एक वैज्ञानिक चिकित्सा पद्धति के रूप में धार्मिक ग्रंथों से ही उत्पन्न हुई थी।
- अन्य संस्कृतियों की तुलना में, भारतीय संस्कृति में विज्ञान और धर्म के बीच कोई विरोध नहीं था, बल्कि वे एक-दूसरे के पूरक थे।
4.Sanatan Bharatiya Sanskruti में शून्य की खोज:
- शून्य की खोज भारतीय गणितज्ञों ने की थी, और यह केवल आर्यभट्ट तक सीमित नहीं था, बल्कि बौद्ध धर्म में भी शून्य का सिद्धांत पहले से था।
- शून्य का सिद्धांत वेदों से निकला, और इसे भारतीय संस्कृति में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। शून्य का वैज्ञानिक दृष्टिकोण न केवल गणित में, बल्कि जीवन और चेतना की गहरी समझ में भी लागू होता था।
- भारतीय वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध किया कि शून्य का अर्थ केवल एक संख्या नहीं, बल्कि यह जीवन के मूलभूत तत्वों की समझ का हिस्सा है।
5. प्राकृतिक तत्वों और आकाशगंगाओं के सिद्धांत:
- भारतीय संस्कृति में सूर्य, ग्रहों और नक्षत्रों के बारे में जो ज्ञान था, वह केवल पूजा के रूप में नहीं, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी महत्व रखता था। उदाहरण स्वरूप, मंदिरों में नवा ग्रहों के बारे में जो जानकारी दी जाती है, वह पूरी तरह से भारतीय ज्योतिषशास्त्र और आकाशगंगा के सिद्धांतों से मेल खाती है।
- इसके अलावा, भारतीय मंदिरों में यह ज्ञान पहले से था कि मंगल ग्रह पृथ्वी से उत्पन्न हुआ है, और इस सिद्धांत को पश्चिमी विज्ञान ने हाल में स्वीकार किया है।
6.Sanatan Bharatiya Sanskruti में भारतीय ज्ञान की अद्वितीयता:
- भारतीय संस्कृति में शून्य, समय, गणित, और ब्रह्मांड के सिद्धांतों के बारे में जो ज्ञान था, वह अन्य संस्कृतियों से कहीं अधिक गहरा और व्यापक था। यही कारण था कि भारत शून्य की खोज करने में सफल हुआ, जबकि अन्य सभ्यताएँ इसे नहीं समझ पाईं।
भारतीय मंदिर विज्ञान और संस्कृति का अद्भुत संगम
भारतीय संस्कृति और विज्ञान का अद्भुत संगम विश्वभर में प्रसिद्ध है। हमारे प्राचीन मंदिरों और धार्मिक स्थलों में जो वास्तुशिल्प और खगोलशास्त्र से जुड़ी जानकारी मौजूद है, वह न केवल हमारे धार्मिक विश्वासों का प्रमाण है, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी अत्यधिक सटीक और महत्वपूर्ण है।
Sanatan Bharatiya Sanskruti में कोणार्क सूर्य मंदिर और खगोलशास्त्र
उदाहरण के तौर पर, कोणार्क का सूर्य मंदिर (जो भारत के उड़ीसा राज्य में स्थित है) इसका प्रमुख प्रमाण है। वहां सूर्य की रौशनी विशेष दिनों में एक विशेष दिशा में गिरती है। इसी तरह, आंध्र प्रदेश के वेद नारायण मंदिर में भगवान के चरणों के ऊपर सूर्य की रौशनी पड़ती है, जबकि कोल्हापुर में महालक्ष्मी का मंदिर तीन दिन के लिए सूर्य की रौशनी देवी के मस्तक से लेकर चरणों तक जाती है।
श्री राम जन्मभूमि और सूर्य तिलक
एक और अद्भुत उदाहरण श्रीराम जन्मभूमि मंदिर का है, जहां राम नवमी के दिन विशेष रूप से सूर्य तिलक होता है। इसके लिए विशेष खगोलशास्त्रीय गणना की आवश्यकता थी, जो अत्यंत सटीक ढंग से की गई। इस गणना को करने में इंस्टिट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स, बेंगलुरु, सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टिट्यूट, रुड़की, और एक प्राइवेट कंपनी ने मिलकर काम किया। आज के आधुनिक विज्ञान और खगोलशास्त्र के उपकरणों के बावजूद यह गणना पहले ही हमारे प्राचीन भारतीय खगोलशास्त्रियों द्वारा की गई थी।
Sanatan Bharatiya Sanskruti में विज्ञान और संस्कृति का संबंध
भारतीय संस्कृति में धर्म और विज्ञान का घनिष्ठ संबंध रहा है। हम इसे प्राचीन मंदिरों और वास्तुकला के माध्यम से समझ सकते हैं। उदाहरण स्वरूप, श्रीराम जन्मभूमि का मंदिर इस बात का गवाह है कि विज्ञान और संस्कृति का संगम बिना आधुनिक तकनीकी उपकरणों के भी संभव था।
ब्रह्मा आयु और आधुनिक विज्ञान
भारतीय वेदों और शास्त्रों में ब्रह्मा आयु (155 ट्रिलियन वर्ष) का उल्लेख किया गया है। यह विचार आज के बिग बैंग थ्योरी से भी परे जाता है, जो कहती है कि ब्रह्मांड लगभग 14 बिलियन वर्ष पहले अस्तित्व में आया। हाल ही में, जेम्स वेब टेलिस्कोप ने नई खोज की है, जिसमें कुछ गैलेक्सी ऐसी पाई गई हैं, जो 14 बिलियन वर्ष से भी पुरानी हैं। इस प्रकार, हमारी प्राचीन गणनाएं और विचार अब आधुनिक विज्ञान के संदर्भ में भी सही साबित हो रहे हैं।
Sanatan Bharatiya Sanskruti में कैलकुलेशन और अद्भुत सटीकता
भारतीय खगोलशास्त्रियों ने समय और स्थान के हिसाब से 84 सेकंड का मुहूर्त निर्धारित किया है। यह सटीक गणना भारतीय संस्कृति की गहरी वैज्ञानिक समझ का प्रतीक है। यह गणना 155 ट्रिलियन वर्षों से लेकर 84 सेकंड तक की काल गणना को प्रमाणित करती है। हमें गर्व होना चाहिए कि हमारे प्राचीन ग्रंथ और संस्कृतियां इस तरह के गहरे वैज्ञानिक तथ्यों को समाहित करती हैं।
विज्ञान और संस्कृति का समन्वय
अंत में, हमें यह समझना होगा कि भारतीय संस्कृति का विज्ञान से गहरा संबंध है, और यह विज्ञान का योगदान केवल वर्तमान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमारे प्राचीन ज्ञान और संस्कृति में भी निहित है। कार्ल सागन, दुनिया के प्रसिद्ध कॉस्मोलॉजिस्ट ने भी यह माना है कि हिंदू शास्त्रों में जो गणनाएं की गई हैं, वे आधुनिक विज्ञान की मान्यता के अनुसार सही हैं।
इसलिए, हम भारतीयों को अपने धर्म, संस्कृति और विज्ञान पर गर्व करना चाहिए, जो न केवल आज के समय में महत्वपूर्ण हैं, बल्कि समय की सीमाओं से परे भी अपनी प्रासंगिकता बनाए रखते हैं।
भारतीय संस्कृति और विज्ञान का अद्वितीय संगम
जब दुनिया में धर्मों और संस्कृतियों का आदान-प्रदान होता है, तो हर संस्कृति अपने विचारों का प्रचार करती है और यह बताती है कि उनके पास सर्वोत्तम विचार हैं। यदि हम भारतीय संस्कृति की बात करें, तो इसमें कुछ ऐसे पहलू हैं, जो दूसरी संस्कृतियों में नहीं पाए जाते। एक सवाल यह है कि भारतीय संस्कृति में ऐसी क्या खास बात है, जो दूसरी संस्कृतियों में नहीं मिलती?
बहुत से लोग नैतिकता की बात करेंगे, और कहेंगे कि यह शायद अन्य स्थानों पर भी कही गई है। लेकिन क्या आप बता सकते हैं ऐसी कोई बात जो हमारे धार्मिक ग्रंथों में लिखी हो, और दूसरी जगह कहीं न हो?
Sanatan Bharatiya Sanskruti में गणित और आयुर्वेद: धार्मिक ग्रंथों का हिस्सा
हमारे यहां गणित और आयुर्वेद धार्मिक ग्रंथों का हिस्सा रहे हैं। भारतीय धार्मिक ग्रंथों में गणित के सिद्धांतों और चिकित्सा विज्ञान (आयुर्वेद) का उल्लेख किया गया है। यह दुनिया के अन्य हिस्सों से बिल्कुल अलग है, जहां धर्म और विज्ञान के बीच अक्सर टकराव होता है। भारतीय संस्कृति में धर्म और विज्ञान एक दूसरे के पूरक रहे हैं। यह एक बुनियादी अंतर है हमारे और अन्य संस्कृतियों के बीच।
भारतीय गणित और शून्य: आर्यभट्ट का योगदान
भारत ने गणित और विज्ञान में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, जिसमें से एक प्रमुख योगदान था शून्य। शून्य की खोज का श्रेय अक्सर आर्यभट्ट को दिया जाता है, लेकिन उन्होंने शून्य को "पहली बार" नहीं खोजा था। शून्य का सिद्धांत पहले से ही भारतीय गणित में था, और आर्यभट्ट ने इसे अपने ग्रंथों में लिखा। वास्तव में, शून्य का विचार वेदों से लिया गया था, और यही तथ्य पश्चिमी दुनिया को समझने में कठिनाई उत्पन्न करता है।
Sanatan Bharatiya Sanskruti में भगवान राम की जन्म कुंडली: भारतीय गणित का अद्वितीय उदाहरण |
यहां तक कि भगवान राम की जन्म कुंडली का हिसाब भारतीय गणित और पंचांग से पहले से लगाया गया था। भारतीय गणितज्ञों ने नक्षत्रों की गणना और समय निर्धारण के लिए अत्यधिक सटीक तरीके विकसित किए थे। इस गणना को आधुनिक सॉफ़्टवेयर के जरिए सत्यापित करने पर 714 ई. की तारीख प्राप्त होती है। यह प्रमाण है कि हमारे गणितज्ञों ने समय और खगोलशास्त्र में गहरी जानकारी रखी थी।
सूर्य और चंद्र ग्रहण: भारतीय पंचांग और आधुनिक विज्ञान
आपने कभी सोचा है कि भारतीय पंचांग में जो ग्रहण की तारीखें दी जाती हैं, वे कितनी सटीक होती हैं? जबकि नासा जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं ग्रहण के बारे में जानकारी देती हैं, भारतीय पंचांग भी उतनी ही सटीक जानकारी प्रदान करता है। भारतीय पंचांग के हिसाब से सूर्य और चंद्र ग्रहण के समय का निर्धारण किया जाता है, जो सैकड़ों साल पुरानी गणनाओं से मेल खाता है।
Sanatan Bharatiya Sanskruti में नवग्रहों की जानकारी: भारतीय ज्ञान से कैपलर तक
भारतीय धार्मिक ग्रंथों में नवग्रहों का उल्लेख पहले से किया गया था। यह ज्ञान भारतीय विद्वानों ने सैकड़ों साल पहले प्राप्त किया था। उदाहरण के लिए, भारतीय ग्रंथों में सूर्य के सात घोड़ों का वर्णन है, जो उनके सात रंगों को दर्शाते हैं। इसी तरह, मंगल के बारे में भी बताया गया है कि यह "भूमि सूत" (पृथ्वी का पुत्र) है। आधुनिक विज्ञान ने इसे हाल ही में पुष्टि की है कि कभी पृथ्वी से एक बड़ा टुकड़ा अलग हुआ था, जिससे मंगल ग्रह का जन्म हुआ।
धरती और ब्रह्मांड की सटीकता: भारतीय गणना और पश्चिमी वैज्ञानिक दृष्टिकोण
भारतीय संस्कृति ने न केवल ब्रह्मांड के बारे में गहरी जानकारी दी, बल्कि यह भी बताया कि धरती का आकार और उसकी स्थिति ब्रह्मांड के संदर्भ में क्या है। कई लोग आज भी यह मानते हैं कि भारतीय धार्मिक ग्रंथों में दी गई जानकारी को पश्चिमी वैज्ञानिक दृष्टिकोण से मेल नहीं खाता। लेकिन यह सच्चाई है कि भारतीय विद्वान सैकड़ों साल पहले उन तथ्यों को समझते थे, जो पश्चिमी वैज्ञानिक अब खोज रहे हैं।
Sanatan Bharatiya Sanskruti और विज्ञान: एक गहरे संबंध की ओर
भारतीय संस्कृति और विज्ञान के बीच एक गहरा और अनदेखा संबंध है, जिसे हम अधिक समझ नहीं पाते हैं। विशेष रूप से जब हम वेदों की बात करते हैं, तो हमें यह समझने की जरूरत है कि वेदों के छह अंग (वेदांग) में ज्योतिष को भी महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। लेकिन आजकल ज्योतिष को अक्सर अंधविश्वास समझ लिया जाता है।
वेदांग और ज्योतिष: विज्ञान का अद्भुत पक्ष
हमारे वेदांगों में शिक्षा, कल्प, निरुक्त, छंद, व्याकरण, और ज्योतिष (खगोलशास्त्र) शामिल हैं। ज्योतिष का वैज्ञानिक आधार है, और यह हमारे जीवन और ब्रह्मांड के गहरे रहस्यों से जुड़ा हुआ है। यह केवल अंधविश्वास नहीं, बल्कि समय, ग्रहों, नक्षत्रों और उनकी हमारी जिंदगी पर असर डालने की वैज्ञानिक समझ है।
Sanatan Bharatiya Sanskruti में पानी और शरीर में चंद्रमा का प्रभाव
जब हम पृथ्वी के बारे में सोचते हैं, तो हम पाते हैं कि लगभग 70% पानी है और 30% भूमि। हमारी शरीर में भी लगभग 70% पानी होता है और ब्रेन (मस्तिष्क) में तो लगभग 90% पानी होता है। यह कोई संयोग नहीं है कि शरीर में पानी का अनुपात और पृथ्वी पर पानी का अनुपात समान हैं।
अब, अगर हम चंद्रमा के प्रभाव की बात करें, तो यह विज्ञान द्वारा सिद्ध किया गया है कि चंद्रमा का प्रभाव समुद्रों में ज्वार-भाटा पैदा करता है। तो अगर चंद्रमा का प्रभाव समुद्र के पानी पर पड़ता है, तो क्या यह संभव नहीं है कि उसका प्रभाव हमारे शरीर में पानी पर भी पड़े? यही कारण है कि भारतीय संस्कृति में चंद्रमा को मन का कारक माना गया है।
चंद्रमा और सूर्य के बारे में वैज्ञानिक साक्ष्य
भारत में चंद्रमा और सूर्य के संबंध में बहुत ही गहरे वैज्ञानिक तथ्यों का उल्लेख किया गया है। उदाहरण के लिए, चंद्रमा का जो प्रकाश हमें रात में दिखता है, वह सूर्य के प्रकाश का परावर्तन है। इसी तरह, भारतीय दर्शन में मन को आत्मा के प्रकाश से प्रकाशित माना गया है, जबकि विज्ञान यह बताता है कि मन का कोई अपना प्रकाश नहीं होता है, वह केवल आत्मा के प्रकाश से प्रकाशित होता है।
Sanatan Bharatiya Sanskruti में संख्या 108: विज्ञान और ब्रह्मांड का गहरा संबंध
भारतीय संस्कृति में 108 की संख्या का अत्यधिक महत्व है। आपने कभी यह सोचा है कि 108 का क्या वैज्ञानिक महत्व है? यदि आप सूर्य के डायमीटर और सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी का अनुपात निकालें, तो आपको 108 मिलता है। इसी तरह, चंद्रमा के डायमीटर और चंद्रमा और पृथ्वी के बीच की दूरी का अनुपात भी 108 के करीब आता है। इसका मतलब है कि सूर्य और चंद्रमा दोनों का हमारे जीवन पर गहरा प्रभाव है, और संख्या 108 इन दोनों के बीच के रिश्ते को दर्शाती है।
धरती और चंद्रमा के बीच की दूरी: जीवन के लिए आदर्श स्थिति
हमारे सोलर सिस्टम में चंद्रमा और पृथ्वी के बीच की दूरी जीवन के अस्तित्व के लिए आदर्श है। अगर यह दूरी 108 के अनुपात से कम या ज्यादा होती, तो पृथ्वी पर जीवन संभव नहीं होता। अगर चंद्रमा और पृथ्वी की दूरी 10% कम हो जाती, तो पृथ्वी का समग्र तापमान इतना बढ़ जाता कि यह एक रेगिस्तान बन जाता, और यदि यह 10% अधिक होती, तो पृथ्वी इतनी ठंडी हो जाती कि जीवन का अस्तित्व समाप्त हो जाता।
यह वही वैज्ञानिक साक्ष्य है जिसे भारतीय संस्कृति ने हजारों साल पहले समझा था, जब उन्होंने चंद्रमा को मन का कारक माना और सूर्य के प्रभाव को जीवन के लिए आवश्यक बताया।
Sanatan Bharatiya Sanskruti में जन्म कुंडली और कर्म कुंडली: भारतीय दृष्टिकोण
भारत में कुंडली और ज्योतिष का बड़ा महत्व है, लेकिन यह केवल भविष्यवाणी तक सीमित नहीं है। हमारी संस्कृति ने कर्मों की भी अहमियत बताई है। भारतीय ज्ञान के अनुसार, जीवन केवल जन्म कुंडली से नहीं, बल्कि हमारे कर्मों से निर्धारित होता है।
इसलिए, भारतीय संस्कृति में जो ज्ञान था, वह अब धीरे-धीरे विज्ञान द्वारा भी स्वीकार किया जा रहा है। यह सिद्ध करता है कि हम जिन वैज्ञानिक तथ्यों को आज समझ रहे हैं, वह भारतीय संस्कृति में हजारों साल पहले से मौजूद थे।
सर्कल में 360 डिग्री क्यों होते हैं?
यह सवाल अक्सर पूछा जाता है कि सर्कल में 360 डिग्री क्यों होते हैं, और इसके पीछे का तार्किक कारण क्या है। इसे समझने के लिए हमें भारतीय संस्कृति और गणित के ऐतिहासिक ज्ञान को देखना होगा, जो आज की विज्ञान और गणित की समझ से कहीं अधिक गहरे और सटीक थे।
Sanatan Bharatiya Sanskruti में 360 डिग्री का गणितीय महत्व
सर्कल में 360 डिग्री होने का कारण सिर्फ गणित नहीं | बल्कि यह हमारे प्राचीन वेदों और ज्योतिष से भी जुड़ा हुआ है। भारतीय संस्कृति में 360 डिग्री का बहुत महत्व है| और इसका गणितीय कारण यह है कि 360 एक ऐसा अंक है जो आसानी से विभाज्य होता है।
- 360 के विभाजक:
- 360 के पास कुल 24 विभाजक होते हैं, जो किसी भी संख्या के लिए सबसे अधिक होते हैं। इसका मतलब है कि 360 को 1, 2, 3, 4, 5, 6, 8, 9, 10, 12, 15, 18, 20, 24, 30, 36, 40, 45, 60, 72, 90, 120 और 180 से विभाजित किया जा सकता है। इस वजह से गणना और ज्योतिष में 360 का उपयोग बहुत सुविधाजनक होता है।
- अन्य संख्या का तुलना:
- अगर हम 100 या 200 को लें, तो इनकी संख्या के पास इतने विभाजक नहीं हैं। 100 के केवल 9 और 200 के 12 विभाजक होते हैं। इसलिए गणना में 360 डिग्री का चयन अधिक व्यावहारिक था।
Sanatan Bharatiya Sanskruti में वेदों और ज्योतिष का योगदान
हमारे प्राचीन ग्रंथों में सौर मंडल की गति | और ग्रहों के मोशन को समझने के लिए जो गणितीय पद्धतियाँ दी गईं | वे आज भी पूरी दुनिया में मानी जाती हैं। वेदों के छः अंग (वेदांग) में से एक अंग है ज्योतिष | जो ग्रहों की गति और उनके प्रभाव को समझने के लिए था। इसमें सर्कल और उसके 360 डिग्री को ग्रहों की गति को निर्धारित करने के लिए इस्तेमाल किया गया।
यह भारतीय ज्ञान ही था | जो सैकड़ों साल पहले सौरमंडल के हर एक ग्रह के घूमने की प्रक्रिया को 360 डिग्री के आधार पर समझने में सक्षम था इस प्रक्रिया |
निष्कर्ष:
भारतीय सभ्यता का योगदान केवल धार्मिक या सांस्कृतिक दृष्टिकोण तक सीमित नहीं था, बल्कि इसका गहरा प्रभाव विज्ञान, गणित और ब्रह्मांड के अध्ययन पर भी था। शून्य, समय, और ब्रह्मांड की अवधारणा में भारतीय वैज्ञानिक दृष्टिकोण आज भी अत्यधिक प्रासंगिक है, और यह साबित करता है कि भारतीय ज्ञान की जड़ें सदियों पहले से अडिग और गहरी थीं।
यह संस्कृति में धर्म और विज्ञान के बीच कोई संघर्ष नहीं है। बल्कि, दोनों एक दूसरे के पूरक रहे हैं। हमारे धार्मिक ग्रंथों में जो ज्ञान था | वह आधुनिक विज्ञान से मेल खाता है | और यह साबित करता है कि भारतीय ज्ञान और विज्ञान अत्यधिक विकसित थे। भारतीय संस्कृति की यह विशेषता दुनिया के अन्य हिस्सों से अलग है | जहां धर्म और विज्ञान के बीच अंतर था।आज भी हम देख सकते हैं | कि भारतीय गणित, खगोलशास्त्र, और चिकित्सा विज्ञान की खोजों ने दुनिया भर के वैज्ञानिकों को प्रभावित किया है। हमें गर्व है कि हम ऐसी संस्कृति का हिस्सा हैं | जो विज्ञान और धर्म को एक साथ लेकर चलती है।
भारतीय संस्कृति में विज्ञान और धर्म का अद्भुत संगम है | जिसे आज की दुनिया धीरे-धीरे समझने लगी है। यह केवल अंधविश्वास नहीं है | बल्कि विज्ञान का एक गहरा, आत्मा से जुड़ा हुआ पक्ष है। भारतीय ज्ञान को सही दृष्टिकोण से समझने पर यह हमें जीवन के गहरे पहलुओं को जानने का अवसर देता है।
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