स्वदेशी जीवनशैली, आर्थिक आजादी देश और सेहत दोनों सुधारने के 10 जादुई तरीके

 1. प्रस्तावना: कर्ज के बोझ तले दबा देश और हमारी जिम्मेदारी

आज हम जिस भारत में सांस ले रहे हैं, क्या वह वास्तव में आर्थिक रूप से स्वतंत्र है? यह एक ऐसा प्रश्न है जो हर जागरूक नागरिक को खुद से पूछना चाहिए। हम अक्सर सरकार की नीतियों, महंगाई और बेरोजगारी की शिकायत करते हैं, लेकिन क्या हमने कभी सोचा है कि इस देश की दशा बदलने में एक आम आदमी की क्या भूमिका हो सकती है?

मैं भारत को भारतीयता की मान्यताओं के आधार पर फिर से खड़ा करना चाहता हूँ। यह केवल एक वाक्य नहीं, बल्कि एक मिशन है। लेकिन इस मिशन की शुरुआत संसद भवन से नहीं, बल्कि आपके और हमारे घर से होगी। जब हम अपने व्यक्तिगत जीवन में थोड़ा बदलाव लाते हैं, अपनी आदतों को बदलते हैं, तो उसका सीधा असर देश की अर्थव्यवस्था (Economy) पर पड़ता है।

आज हमारे देश पर लाखों करोड़ों रुपयों का विदेशी कर्ज है। जब किसी देश पर कर्ज बढ़ जाता है, तो उसकी संप्रभुता खतरे में पड़ जाती है। इसे समझने के लिए हमें बहुत बड़े अर्थशास्त्री होने की जरूरत नहीं है। इसे एक साधारण परिवार के उदाहरण से समझा जा सकता है। मान लीजिए, हमारे घर पर बहुत ज्यादा कर्ज हो गया है। बैंक और साहूकार दरवाजे पर खड़े हैं। ऐसी स्थिति में हम क्या करेंगे? 


मुख्य रूप से दो ही रास्ते होते हैं:

  1. घर के फालतू खर्चे घटाना।

  2. घर की आमदनी बढ़ाना।

यही नियम देश पर भी लागू होता है। भारत हमारा एक 'बड़ा घर' है। अगर इस बड़े घर पर कर्ज है, तो हमें देश के फालतू खर्चे घटाने होंगे और देश की आमदनी बढ़ानी होगी। यह मेरी आपसे व्यक्तिगत अपील है कि देश को इस संकट से उबारने के लिए अपनी जीवनशैली में "थोड़ा बदलाव" (Minor Changes) करें। यह बदलाव बहुत बड़ा नहीं है, लेकिन इसका प्रभाव क्रांतिकारी होगा।


2. आर्थिक स्वराज: घर के अर्थशास्त्र से देश का अर्थशास्त्र

जब हम कहते हैं कि "देश का खर्चा घटाना है," तो इसका मतलब सरकार का खर्चा घटाना नहीं है, बल्कि देश के एक-एक नागरिक का फालतू खर्चा घटाना है। क्योंकि नागरिक ही देश बनाते हैं।

आपको अपनी दिनचर्या का विश्लेषण करना होगा। सुबह आँख खुलने से लेकर रात को सोने तक, आप किन चीजों पर पैसा खर्च कर रहे हैं? क्या वो खर्चे जरूरी हैं? क्या उन खर्चों के बिना जीवन चल सकता है? और सबसे महत्वपूर्ण—क्या उन खर्चों से देश का पैसा विदेश जा रहा है?

अगर हम अपने जीवन से उन चीजों को हटा दें जिनके बिना हम मजे से जी सकते हैं, तो हम पाएंगे कि हम अनजाने में ही देश के लाखों करोड़ रुपये बचा रहे हैं। आइए, एक-एक करके उन आदतों का विश्लेषण करें जो हमारी जेब और देश के खजाने, दोनों में छेद कर रही हैं।


3. चाय की गुलामी: एक ऐसी आदत जो देश को खोखला कर रही है

हमारे देश में फालतू खर्चे की शुरुआत सुबह बिस्तर से ही हो जाती है। सबसे बड़ा फालतू खर्चा जो यह देश कर रहा है, वह है—चाय (Tea)

सुबह उठते ही हमें चाय चाहिए। कुछ लोग तो ऐसे हैं कि जब तक 'बेड-टी' (Bed Tea) न मिले, उनकी आँख नहीं खुलती। कुछ का कहना है कि चाय पिए बिना शौच (Toilet) नहीं उतरती। यह कितनी हास्यास्पद और दुखद स्थिति है कि हम अपनी शारीरिक क्रियाओं के लिए भी एक विदेशी पेय पर निर्भर हो गए हैं।

चाय का अर्थशास्त्र (The Economics of Tea)

जरा आंकड़ों पर गौर करें। भारत में एक साल में हम लगभग 70 करोड़ किलोग्राम चाय पी जाते हैं। अगर हम औसतन एक किलो चाय की कीमत 150-200 रुपये (उस समय के हिसाब से 50 रुपये का उदाहरण, लेकिन वर्तमान में यह बहुत अधिक है) भी मान लें, और उसमें चीनी, दूध और गैस का खर्चा जोड़ें, तो यह खर्चा 90 हजार करोड़ रुपये से भी ऊपर बैठता है।

सोचिए! 90,000 करोड़ रुपये हम सिर्फ एक ऐसी चीज पर फूंक देते हैं जिसकी हमारे शरीर को रत्ती भर भी जरूरत नहीं है।

चाय: अंग्रेजों की विरासत, भारत का नाश

क्या आप जानते हैं कि अंग्रेजों के आने से पहले भारत में कोई चाय नहीं पीता था? चाय भारतीय संस्कृति का हिस्सा कभी नहीं रही।

  • भौगोलिक कारण: चाय उन देशों के लिए ठीक हो सकती है जहाँ बहुत ठंड पड़ती है (जैसे यूरोप, अमेरिका, कनाडा)। चाय शरीर में गर्मी लाती है और ब्लड प्रेशर बढ़ाती है।

  • भारत की स्थिति: भारत एक 'गर्म देश' (Tropical Country) है। यहाँ पहले से ही गर्मी है, हमारा रक्त पहले से ही गर्म है। ऐसे में ऊपर से गर्म चाय पीना आग में घी डालने जैसा है।

स्वास्थ्य पर चाय का दुष्प्रभाव

आयुर्वेद में चाय को स्पष्ट रूप से 'निषिद्ध' माना गया है।

  1. एसिडिटी (Acidity): चाय में जितने भी रसायन (Chemicals) हैं, वे सब एसिडिक (अम्लीय) हैं। जब आप चाय पीते हैं, तो पेट में एसिडिटी बढ़ती है।

  2. रक्त विकार: जब पेट में अम्लता बढ़ती है, तो वह खून में मिल जाती है। रक्त की अम्लता बढ़ने से शरीर में 80 तरह के रोग पैदा होते हैं।

  3. अतिरिक्त खर्चा: पहले आप चाय खरीदने में 90 हजार करोड़ खर्च करते हैं, फिर चाय से होने वाली बीमारियों (जैसे अल्सर, गैस, हार्ट बर्न) के इलाज पर हजारों करोड़ खर्च करते हैं।

भ्रष्टाचार की जड़: चाय

सरकारी दफ्तरों में तो चाय के अलावा मानो कुछ काम ही नहीं होता। "अरे भाई, चाय पीने चलो"—यह वाक्य अक्सर रिश्वत और घूसखोरी का कोडवर्ड बन गया है। चाय ने हमारी कार्य संस्कृति को भी बर्बाद किया है।

विकल्प क्या है? हम गर्म देश के लोग हैं। हमें ऐसी चीजें पीनी चाहिए जो शरीर को ठंडक दें या संतुलित रखें।

  • दूध

  • दही

  • लस्सी

  • छाछ (मट्ठा)

  • नींबू की शिकंजी

  • नारियल पानी

  • गन्ने का रस, संतरे या मौसमी का रस।

अगर आपको गर्म पीने की आदत है, तो तुलसी, अदरक और काली मिर्च का काढ़ा पिएं। या सादे पानी को गर्म करके पिएं। स्वामी रामदेव जी द्वारा बताया गया 'दिव्य पेय' चाय का बेहतरीन विकल्प है। यह न केवल स्वाद में अच्छा है, बल्कि चाय के कारण शरीर में जमा हुए जहर (Toxins) को भी बाहर निकाल फेंकता है।


4. श्वेत क्रांति का असली अर्थ: दूध, गाय और कृषि का चक्र

जब मैं लोगों से चाय बंद करने को कहता हूँ, तो वे पूछते हैं, "फिर क्या पिएं?" मेरा सीधा सुझाव है—दूध पिएं।

इसके पीछे एक बहुत गहरा आर्थिक मॉडल छिपा है। अगर हम चाय पर खर्च होने वाले 90 हजार करोड़ रुपये का दूध पीना शुरू कर दें, तो देश की दशा और दिशा दोनों बदल जाएगी।

20 करोड़ गायों का जीवन

इतने बड़े पैमाने पर दूध की मांग पूरा करने के लिए हमें कम से कम 20 करोड़ नई गायें पालनी पड़ेंगी।

  • आज जो गायें कत्लखानों में कट रही हैं, उनका कत्ल अपने आप रुक जाएगा क्योंकि दूध के लिए उनकी जरूरत पड़ेगी।

  • कानून बनाने से गो-हत्या शायद न रुके, लेकिन दूध की मांग बढ़ने से आर्थिक कारणों से गो-हत्या जरूर रुक जाएगी।

बैल और ऊर्जा की बचत

जब 20 करोड़ गायें बढ़ेंगी, तो उनके बछड़े भी होंगे। वे बैल बनेंगे।

  • ये करोड़ों बैल खेती के काम आएंगे।

  • जब बैल खेती करेंगे, तो ट्रैक्टर की जरूरत खत्म हो जाएगी।

  • ट्रैक्टर हटेगा, तो किसानों का डीजल का खर्चा पूरी तरह बंद हो जाएगा। डीजल का पैसा भी विदेशों में जाता है, वह भी बचेगा।

यह एक पूरा चक्र (Cycle) है। एक कप चाय छोड़ने से आप परोक्ष रूप से गो-रक्षा कर रहे हैं, किसान को अमीर बना रहे हैं और विदेशी तेल कंपनियों का मुनाफा कम कर रहे हैं।


5. जहर मुक्त खेती: यूरिया और डीएपी का विकल्प

स्वदेशी अर्थशास्त्र का अगला चरण खेती से जुड़ा है। जब गाय और बैल बढ़ेंगे, तो गोबर बहुत होगा।

आज हमारा किसान यूरिया और डीएपी (DAP) जैसे रासायनिक खादों पर निर्भर है। सरकार इन खादों पर भारी सब्सिडी देती है, और यह पैसा भी अंततः विदेशी कंपनियों को जाता है। इन रसायनों ने हमारी धरती को बंजर बना दिया है।

गोबर की अर्थव्यवस्था

  • अगर हर किसान के पास पर्याप्त गाय-बैल हों, तो उसे खेत में डालने के लिए मुफ्त का गोबर मिलेगा।

  • गोबर की खाद यूरिया से कई गुना बेहतर है। इससे 4 लाख 80 हजार करोड़ रुपये (अनुमानित सब्सिडी और खरीद का खर्च) का यूरिया/डीएपी का खर्चा बच जाएगा।

कीटनाशक vs गोमूत्र

आज फसलों पर कीड़े मारने के लिए एंडोसल्फान, मैलाथियान जैसे जहरीले कीटनाशक छिड़के जाते हैं। ये जहर हमारे खाने में आता है और कैंसर जैसी बीमारियां देता है।

  • जब गायें बढ़ेंगी, तो गोमूत्र भी बहुत होगा।

  • गोमूत्र को इकट्ठा करके फसलों पर छिड़कने से कीड़े नहीं आते। यह एक प्राकृतिक कीटनाशक है।

  • इससे देश का 2 लाख करोड़ रुपये का कीटनाशकों का खर्च बच जाएगा।

निष्कर्ष: सिर्फ एक आदत बदलने (चाय छोड़कर दूध पीने) से हम कृषि, अर्थव्यवस्था और स्वास्थ्य तीनों को सुधार सकते हैं। पैसा ब्रुक बॉन्ड या लिप्टन के पास जाने के बजाय हमारे गरीब किसान के पास जाएगा।


6. दैनिक जीवन में जहर: टूथपेस्ट और कॉस्मेटिक्स का काला सच

हमारे जीवन में एक और बड़ा फालतू खर्चा है—टूथपेस्ट और टूथब्रश। सुबह उठकर हम ब्रश पर पेस्ट लगाकर जो रगड़ते हैं, वह असल में क्या है?

टूथपेस्ट की भयावह सच्चाई

अमेरिका और यूरोप में जब टूथपेस्ट बिकता है, तो उस पर एक वैधानिक चेतावनी (Statutory Warning) लिखी होती है:

"Warning: Keep out of reach of children below 6 years. If swallowed, contact poison control center immediately." (चेतावनी: 6 साल से छोटे बच्चों की पहुँच से दूर रखें। अगर यह निगल लिया जाए, तो तुरंत जहर नियंत्रण केंद्र से संपर्क करें।)

वहाँ इसे "जहर" माना जाता है, और हमारे यहाँ माँ अपने छोटे बच्चे को खुद ब्रश पर पेस्ट लगाकर देती है!

टूथपेस्ट में क्या है?

  1. Sodium Lauryl Sulfate (SLS): टूथपेस्ट में झाग (Foam) बनाने के लिए यह केमिकल डाला जाता है। यही केमिकल शेविंग क्रीम, वॉशिंग पाउडर और टॉयलेट क्लीनर में भी होता है। 0.5 मिलीग्राम SLS भी अगर शरीर में चला जाए, तो यह कैंसर (Carcinogenic) पैदा कर सकता है। हम रोज अपने मसूड़ों के जरिए इस जहर को शरीर में उतार रहे हैं।

  2. मरे हुए जानवरों की हड्डियाँ: टूथपेस्ट को बनाने में डी-कैल्शियम फॉस्फेट का इस्तेमाल होता है, जो मरे हुए जानवरों की हड्डियों से बनता है। भारत में हजारों कत्लखाने हैं जहाँ करोड़ों जानवर कटते हैं। उनकी हड्डियाँ ये टूथपेस्ट कंपनियां खरीदती हैं।

    • हम खुद को शाकाहारी या धार्मिक कहते हैं, और सुबह की शुरुआत मरे हुए जानवरों की हड्डियों को दाँतों पर रगड़ कर करते हैं। क्या यह धर्म भ्रष्ट करना नहीं है?

ब्रश का प्लास्टिक कचरा

टूथब्रश प्लास्टिक का बना होता है। हम कुछ महीने इस्तेमाल करते हैं और फेंक देते हैं। यह प्लास्टिक कभी नष्ट नहीं होता और पर्यावरण को नुकसान पहुँचाता है।

स्वदेशी और सुरक्षित विकल्प: दातुन

भगवान ने हमें नीम, बबूल, करंज, पाकड़ जैसे वृक्ष दिए हैं।

  • दातुन मुफ्त में मिलती है या बहुत सस्ती है।

  • इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं है।

  • दातुन का रस जब पेट में जाता है, तो यह एंटी-बैक्टीरियल होने के कारण आंतों की सफाई करता है।

  • दातुन का चक्र: एक दातुन को आप 7 दिन तक इस्तेमाल कर सकते हैं। आगे का चबाया हुआ हिस्सा काट दें, और बाकी को पानी में रख दें।

रोजगार का सृजन: अगर हम पेस्ट बंद करके दातुन इस्तेमाल करें, तो गांवों में लाखों लोगों को दातुन बेचने का रोजगार मिल सकता है। पैसा कोलगेट-पामोलिव (Colgate-Palmolive) जैसी विदेशी कंपनियों के बजाय हमारे गांव के लोगों को मिलेगा।


7. सौंदर्य का भ्रम: फेयरनेस क्रीम और असली सुंदरता की परिभाषा

हम "सुंदर" दिखने के लिए हजारों करोड़ रुपये कॉस्मेटिक्स पर बर्बाद करते हैं। फेयर एंड लवली (Fair & Lovely) जैसी क्रीमों का दावा है कि वे गोरा बनाती हैं।

  • मैंने एक भैंस को 4 साल तक फेयर एंड लवली लगाई, वह आज भी काली की काली है।

  • दुनिया में ऐसी कोई क्रीम नहीं है जो किसी काले व्यक्ति को गोरा बना सके। त्वचा का रंग हमारे DNA और जलवायु से तय होता है।

  • अगर क्रीम से गोरापन आता, तो अफ्रीका के लोग काले क्यों होते?

हम 25 ग्राम क्रीम के लिए 40-50 रुपये देते हैं। यानी लगभग 1600-2000 रुपये किलो! सोचिए, हम 400-500 रुपये किलो बादाम नहीं खाते, लेकिन 2000 रुपये किलो की जहरीली क्रीम थोपते हैं।

शेविंग क्रीम और साबुन का विकल्प

मर्द शेविंग क्रीम पर हजारों करोड़ खर्च करते हैं। विकल्प:

  • कच्चा दूध: चेहरे पर थोड़ा कच्चा दूध लगाएं और रेजर चलाएं। दूध से बाल नरम हो जाते हैं और दाढ़ी बहुत आसानी से बनती है। इससे ब्लेड की उम्र भी बढ़ जाती है।

  • दूध एक नेचुरल 'क्लींजर' है। ब्यूटी पार्लर में 'मिल्क क्लींजिंग' के नाम पर हजारों रुपये लिए जाते हैं, आप इसे घर पर मुफ्त में कर सकते हैं।

  • नहाने के लिए: साबुन में कास्टिक सोडा होता है जो त्वचा को खराब करता है। इसकी जगह बेसन, मुल्तानी मिट्टी, या कच्चे दूध से नहाएं। महाशिवरात्रि पर हम शिवजी को दूध से नहलाते हैं, तो हम खुद लक्स या लाइफबॉय से क्यों नहाते हैं?

बुजुर्ग कहते हैं—"दूधो नहाओ, पूतो फलो।" कभी किसी ने नहीं कहा "लक्स नहाओ, पूतो फलो।"


8. व्यसन मुक्ति: गुटखा, शराब और सिगरेट छोड़ने का अचूक आयुर्वेदिक उपाय

देश का युवा और गरीब वर्ग अपनी मेहनत की गाढ़ी कमाई का एक बड़ा हिस्सा गुटखा, बीड़ी, सिगरेट और शराब में उड़ा देता है।

  • गुटखा 1000-2000 रुपये किलो पड़ता है। इतने में आप काजू-बादाम खा सकते हैं।

  • हर साल 20 लाख लोग कैंसर से मरते हैं।

छोड़ने का तरीका (रामबाण उपाय): कई लोग कहते हैं, "छोड़ना चाहते हैं, पर छूटती नहीं।" तलब (Cravings) बहुत तेज होती है। इसका वैज्ञानिक कारण है शरीर में सल्फर (Sulphur) की कमी होना। जब हम अदरक का प्रयोग करते हैं, तो सल्फर की कमी पूरी होती है।

विधि:

  1. अदरक के बहुत छोटे-छोटे टुकड़े कर लें।

  2. उन पर नींबू का रस निचोड़ें और थोड़ा काला नमक मिलाएं।

  3. इसे धूप में सुखा लें।

  4. इसे अपनी जेब में रखें। जब भी बीड़ी, सिगरेट या गुटखा की तलब लगे, अदरक का एक टुकड़ा मुंह में रखें और चूसें (चबाएं नहीं)।

  5. अदरक का रस जैसे-जैसे अंदर जाएगा, सल्फर की मात्रा पूरी होगी और नशे की तलब अपने आप खत्म हो जाएगी।


9. आयुर्वेद का खजाना: महर्षि वाग्भट के 4 जादुई नियम

हम हर साल साढ़े छह लाख करोड़ रुपये बीमारियों के इलाज पर खर्च करते हैं। फिर भी न बीपी ठीक होता है, न डायबिटीज, न ही हार्ट की बीमारी। सबसे अच्छा तरीका है—बीमार पड़ना ही बंद कर दो।

आयुर्वेद के महान ऋषि वाग्भट जी ने अष्टांग हृदयम् में स्वास्थ्य के कुछ नियम बताए हैं। अगर आप सिर्फ 4 नियमों का पालन करें, तो वात, पित्त और कफ संतुलित रहेंगे और आप कभी बीमार नहीं पड़ेंगे।

नियम 1: खाना खाने के तुरंत बाद पानी न पिएं

जैसे ही हम खाना खाते हैं, पेट में 'जठराग्नि' (Digestive Fire) प्रदीप्त होती है जो खाने को पचाती है।

  • अगर आप ऊपर से पानी पी लेते हैं, तो वह आग बुझ जाती है।

  • फिर खाना 'पचता' नहीं है, बल्कि पेट में पड़ा-पड़ा 'सड़ता' है।

  • सड़े हुए खाने से गैस, एसिडिटी और विष (Toxins) बनते हैं जो 100 से ज्यादा रोग पैदा करते हैं।

  • सही तरीका: खाना खाने के कम से कम एक से डेढ़ घंटे बाद पानी पिएं। अगर तुरंत कुछ पीना ही है तो सुबह जूस, दोपहर को लस्सी/छाछ और रात को दूध पिएं।

नियम 2: पानी घूँट-घूँट करके पिएं (Sip by Sip)

पानी को एक साथ गटागट नहीं पीना चाहिए।

  • हमारे मुंह में जो लार (Saliva) बनती है, वह क्षारीय (Alkaline) होती है।

  • पेट में अम्ल (Acid) बनता है।

  • जब हम घूँट-घूँट पानी पीते हैं, तो हर घूँट के साथ लार पेट में जाती है और एसिड को न्यूट्रल (शांत) करती है।

  • जब पेट का एसिड शांत रहता है, तो रक्त में अम्लता नहीं बढ़ती।

  • जानवर और पक्षी हमेशा चाट-चाट कर या घूँट भरकर पानी पीते हैं, इसलिए उन्हें कभी डायबिटीज या मोटापा नहीं होता।

नियम 3: सुबह उठते ही सबसे पहले पानी पिएं (उषापान)

सुबह सोकर उठते ही, बिना कुल्ला किए, बिना मुंह धोए कम से कम 2-3 गिलास पानी पिएं।

  • रात भर मुंह में जो लार जमा हुई है, वह बहुत कीमती है। उसे थूकें नहीं, पानी के साथ पेट में जाने दें।

  • सुबह पेट में एसिड सबसे ज्यादा होता है, यह लार उसे सबसे अच्छे से शांत करती है।

  • इससे पेट साफ होता है और कब्ज की समस्या खत्म होती है।

नियम 4: ठंडा पानी (Fridge Water) कभी न पिएं

बर्फ का पानी या फ्रिज का ठंडा पानी स्वास्थ्य के लिए जहर है।

  • पेट गर्म होता है और पानी ठंडा। जब आप ठंडा पानी पीते हैं, तो शरीर के अंदर एक संघर्ष शुरू होता है।

  • पेट को उस पानी को शरीर के तापमान तक गर्म करने के लिए अतिरिक्त ऊर्जा (खून) की जरूरत पड़ती है।

  • यह खून दिमाग और दिल से खिंचकर पेट में आता है। बार-बार ऐसा होने से अंगों में कमजोरी आती है, जिससे हार्ट अटैक, ब्रेन हेमरेज या किडनी फेलियर हो सकता है।

  • ठंडा पानी बड़ी आंत (Large Intestine) को संकुचित कर देता है, जिससे मल साफ नहीं होता।

  • हमेशा मटके का पानी या गुनगुना पानी पिएं।


10. सादा जीवन, उच्च विचार: महापुरुषों की जीवनशैली

मैंने हिसाब लगाया है कि अगर हम अपनी जीवनशैली को थोड़ा सादा (Simple) बना लें, तो देश का 2 लाख 32 हजार करोड़ रुपये और बचा सकते हैं।

इसे हम "Simple Living, High Thinking" कहते हैं।

  • अगर आपके पास जूते का एक जोड़ा है और वह सही है, तो दूसरा मत खरीदो जब तक वह फट न जाए।

  • कपड़े उतने ही रखो जितनी जरूरत है। फैशन के नाम पर विदेशी ब्रांड्स को पैसा मत दो।

हमारे आदर्श कौन हैं?

  • महात्मा गांधी: बैरिस्टर थे, सूट-बूट पहनते थे। लेकिन जब देश की गरीबी देखी, तो सब त्याग दिया और लंगोटी पहन ली। तब देश ने उन्हें 'महात्मा' कहा।

  • श्री राम: जब तक महलों में थे, राजकुमार थे। जब वनवास गए, कंद-मूल खाया और तपस्या की, तब 'मर्यादा पुरुषोत्तम' कहलाए।

  • महावीर और बुद्ध: इन्होंने राज-पाठ त्यागा, तब भगवान बने।

भारत की परंपरा 'भोग' की नहीं, 'त्याग' की है। हम सुंदरता को क्रीम और पाउडर में नहीं, बल्कि गुण, कर्म और स्वभाव में देखते हैं। झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई या कित्तूर चेन्नम्मा को हम उनकी सुंदरता के लिए नहीं, उनके शौर्य और देशभक्ति के लिए याद करते हैं।


11. निष्कर्ष: संकल्प और बदलाव की शुरुआत

दोस्तों, यह देश हमारा है। इसकी समस्याएं भी हमारी हैं, और समाधान भी हमें ही करना होगा। सरकारें आएंगी और जाएंगी, लेकिन अगर हम नहीं बदले, तो देश वहीं का वहीं रहेगा।

आज हम सब मिलकर कुछ छोटे-छोटे संकल्प लें:

  1. चाय छोड़ेंगे, दूध या स्वदेशी पेय अपनाएंगे।

  2. विदेशी कंपनियों का बहिष्कार करेंगे (टूथपेस्ट, साबुन, क्रीम आदि)।

  3. स्थानीय और प्राकृतिक चीजों का प्रयोग करेंगे (दातुन, बेसन, मुल्तानी मिट्टी)।

  4. स्वस्थ जीवन के लिए आयुर्वेद के नियमों का पालन करेंगे।

  5. व्यसन मुक्त जीवन जिएंगे।

आपकी छोटी सी बचत, देश की बहुत बड़ी कमाई है। जब आप विदेशी सामान नहीं खरीदते, तो देश का पैसा देश में रहता है। जब आप बीमार नहीं पड़ते, तो देश का संसाधन बचता है।

आइए, राजीव दीक्षित जी के इस सपने को पूरा करें। भारत को भारतीयता की मान्यता के आधार पर फिर से खड़ा करें। खुद बदलें, देश बदलेगा।

"सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामया।" (सब सुखी हों, सब निरोगी हों।)

जय हिन्द! जय स्वदेशी!

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