सनातन धर्म, वक्फ बोर्ड और संविधान:भारत में एक विश्लेषण
सनातन धर्म, वक्फ बोर्ड और संविधान की भूमिका पर हाल के वर्षों में कई महत्वपूर्ण चर्चाएँ हुई हैं भारत में। इन मुद्दों को लेकर विचार-विमर्श का एक प्रमुख हिस्सा सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्विनी उपाध्याय द्वारा की गई चर्चाएँ हैं। उन्होंने विभिन्न सार्वजनिक मंचों पर इन मुद्दों पर अपने विचार प्रस्तुत किए हैं, जो न केवल धार्मिक विविधता, बल्कि भारतीय संविधान की संरचना और उसे लागू करने के तरीके पर भी गहरे सवाल उठाते हैं।
सनातन धर्म: एक समग्र दृष्टिकोण
अश्विनी उपाध्याय जी के अनुसार, सनातन धर्म केवल एक धार्मिक पंथ नहीं है, बल्कि यह एक समग्र जीवन दर्शन है जो समता, समानता, और सबका विकास की बात करता है। उनका कहना है कि सनातन का अर्थ 'समरसता' और 'सभी के साथ' है, और यह किसी विशेष पंथ या समुदाय के खिलाफ नहीं है। भारत में संविधान का तात्पर्य भी इसी दृष्टिकोण से है, जिसमें सभी नागरिकों को समान अधिकार और स्वतंत्रता देने का प्रावधान है।
उनके अनुसार, भारत का संविधान केवल एक दस्तावेज नहीं है, बल्कि यह सनातन धर्म की नींव पर आधारित है। जब तक भारत में सनातन धर्म मजबूत है, तब तक देश में लोकतंत्र और समानता कायम रहेगी। यदि सनातन धर्म कमजोर होगा, तो भारत में भी लोकतांत्रिक मूल्य कमजोर हो सकते हैं, जैसा कि पाकिस्तान और बांग्लादेश में हुआ है।
वक्फ बोर्ड और धार्मिक समानता
अश्विनी उपाध्याय ने भारत में वक्फ बोर्ड के अस्तित्व पर भी सवाल उठाया है। उनका मानना है कि वक्फ कानून देश के संविधान के खिलाफ है, क्योंकि यह धर्म के आधार पर विशेष कानून और संस्थान बनाता है, जो भारतीय संविधान की समानता और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के विपरीत है। उनका तर्क है कि संविधान में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि भारत में किसी भी धर्म के आधार पर विभाजन नहीं होगा, और इस प्रकार वक्फ जैसे धार्मिक संस्थान को समाप्त करना चाहिए था।
वह कहते हैं, "संविधान निर्माताओं ने भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनाने की मंशा से धर्म के आधार पर विभाजन के खिलाफ कानून बनाए थे। लेकिन वक्फ बोर्ड जैसे संस्थान इस संविधानिक सिद्धांत का उल्लंघन करते हैं।"
सनातन बोर्ड की मांग: क्या यह एक राजनीतिक कदम है?
जब सनातन बोर्ड की मांग की जाती है, तो यह सवाल उठता है कि क्या यह वक्फ बोर्ड के समानांतर एक 'बदला' लेने का प्रयास है, या इसके पीछे कोई ठोस विचारधारा है। अश्विनी उपाध्याय का मानना है कि सनातन धर्म का प्रचार-प्रसार एक समाजिक और सांस्कृतिक आवश्यकता है, जो केवल समाज का कार्य नहीं, बल्कि सरकार की भी जिम्मेदारी है।
वह कहते हैं, "सनातन धर्म का प्रचार केवल एक धार्मिक या समाजिक कार्य नहीं है, यह हमारे संविधान की एक बुनियादी आवश्यकता है। जब तक सनातन मजबूत है, तब तक भारत का संविधान भी मजबूत है।"
भारत की संस्कृति और संविधान
अश्विनी उपाध्याय ने भारत के संविधान को लेकर भी कई महत्वपूर्ण विचार प्रस्तुत किए। उनका कहना है कि संविधान की वास्तविक भावना और उद्देश्यों को समझते हुए, हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि धार्मिक समानता और धार्मिक स्वतंत्रता केवल कागजों पर न रहें, बल्कि असल जिंदगी में भी इनका पालन हो। वह इसे एक बुनियादी अधिकार मानते हैं, जो हर नागरिक को समान अवसर और सम्मान प्रदान करता है।
वह यह भी कहते हैं कि भारत में हर धर्म, जाति और पंथ के लोग अपनी मान्यताओं और रीतिरिवाजों के अनुसार जीवन जीने का अधिकार रखते हैं, और इस प्रकार के अधिकारों की सुरक्षा भारत के संविधान द्वारा की जाती है।
निष्कर्ष
अश्विनी उपाध्याय जी का विचार है कि भारत में सनातन धर्म की रक्षा केवल समाज का कार्य नहीं है, बल्कि यह सरकार और संवैधानिक संस्थाओं की जिम्मेदारी भी है। उनकी दृष्टि में, वक्फ बोर्ड और अन्य धार्मिक संस्थान केवल एक धर्म विशेष को बढ़ावा देने के बजाय, भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता को स्वीकार कर उसे सम्मान देने की आवश्यकता है।
उनके अनुसार, एक सनातन बोर्ड का गठन केवल एक वैकल्पिक व्यवस्था नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान को मजबूत करने के लिए एक आवश्यक कदम हो सकता है।
इसलिए, हमें यह समझने की आवश्यकता है कि भारत का संविधान केवल कानूनी दस्तावेज नहीं है, बल्कि यह देश की संस्कृति, परंपराओं और विविधता को सम्मान देने वाला एक ढांचा है। जब तक हम अपने संविधान की मूल भावना को समझेंगे और उसे साकार करेंगे, तब तक हम एक मजबूत और समृद्ध भारत की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं।
भारत में घुसपैठ और धर्मांतरण: एक गंभीर राष्ट्रीय सुरक्षा संकट
भारत, जो विश्व की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक राष्ट्रों में से एक है, आज एक गंभीर संकट का सामना कर रहा है। यह संकट न केवल देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरनाक है, बल्कि इसके सामाजिक और सांस्कृतिक ताने-बाने को भी प्रभावित कर रहा है। इस संकट की जड़ में दो प्रमुख मुद्दे हैं: घुसपैठ और धर्मांतरण।
घुसपैठ: एक अनदेखा संकट
भारत में घुसपैठ की समस्या लगातार बढ़ रही है, और इसके परिणामस्वरूप देश की सीमाओं की सुरक्षा और राष्ट्रीय संप्रभुता पर गंभीर खतरे मंडरा रहे हैं। हाल ही में झारखंड विधानसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री ने इस विषय को उठाया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि राज्य में घुसपैठियों की संख्या बढ़ी है, और इसके कारण आदिवासियों की संख्या में कमी आई है।
अलबत्ता, कांग्रेस ने इस बयान पर सवाल उठाते हुए यह पूछा था कि जब मोदी सरकार ने दावा किया था कि घुसपैठियों को बाहर किया जा चुका है, तो अब ये घुसपैठी कहां से आ गए? हालांकि, इस मुद्दे पर कोई स्पष्ट आंकड़े या ठोस रिपोर्ट नहीं पेश की गई है।
लेकिन, आंकड़ों की बात करें तो 2017 में एक जनहित याचिका (PIL) में अनुमानित तौर पर 5 करोड़ घुसपैठियों का आंकड़ा प्रस्तुत किया गया था। इसके बाद, भारत सरकार ने संसद में 2 करोड़ घुसपैठियों का अनुमान दिया। हालांकि, इस आंकड़े की पुष्टि या खंडन के लिए कोई ठोस आधार नहीं था।
धर्मांतरण: एक राष्ट्रीय सुरक्षा संकट
धर्मांतरण का मुद्दा भी एक गहरी चिंता का विषय बन चुका है। विशेष रूप से उन स्थानों पर जहां विशेष समुदायों का धर्म परिवर्तन एक संगठित प्रयास के तहत हो रहा है। कई बार यह आरोप लगाया गया है कि कुछ मिशनरियां और जिहादी संगठन जानबूझकर धर्मांतरण के माध्यम से भारत के सामाजिक ताने-बाने को कमजोर कर रहे हैं।
धर्मांतरण को लेकर यह दावा किया जा रहा है कि यह देश की एकता और अखंडता के लिए खतरे की घंटी है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा हो सकता है, क्योंकि यह एक संगठित अपराध के रूप में सामने आ रहा है, जहां पैसे, प्रलोभन और अन्य साधनों के माध्यम से लोगों को धर्म बदलने के लिए मजबूर किया जा रहा है।
कई नेता इस बात पर जोर दे रहे हैं कि धर्मांतरण के खिलाफ कठोर कानून बनाना चाहिए, और जो लोग इसका समर्थन कर रहे हैं या इसे बढ़ावा दे रहे हैं, उन्हें सख्त सजा दी जानी चाहिए। उनका कहना है कि यदि सरकार इस मुद्दे पर तुरंत कदम नहीं उठाती, तो यह देश की एकता को खतरे में डाल सकता है।
घुसपैठियों और धर्मांतरण का संबंध
इन दोनों मुद्दों में एक सामान्य धारा है: असंवैधानिक तरीके से लोगों की पहचान छुपाना और उन्हें भारतीय समाज में एकीकृत करना। यदि हम घुसपैठ और धर्मांतरण दोनों पर ध्यान दें, तो हमें यह समझ में आता है कि ये दोनों समस्याएं एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं। घुसपैठियों का पहचान छुपाने और उन्हें असंवैधानिक तरीके से भारतीय पहचान देने के लिए फर्जी दस्तावेजों का इस्तेमाल किया जाता है। यही स्थिति धर्मांतरण के मामले में भी है।
सरकार और संबंधित एजेंसियों को इस मुद्दे पर गंभीरता से कदम उठाने की आवश्यकता है। यदि इन समस्याओं का समाधान समय पर नहीं किया गया, तो इससे भारतीय समाज में असंतुलन और तनाव बढ़ सकता है।
घुसपैठ और धर्मांतरण के खिलाफ सख्त कदम
देश में घुसपैठियों और धर्मांतरण को रोकने के लिए कठोर कानून की आवश्यकता है। इसके लिए न केवल नए कानून बनाने की आवश्यकता है, बल्कि जो कानून पहले से अस्तित्व में हैं, उन्हें सख्ती से लागू करने की जरूरत है। विशेष रूप से, यदि कोई व्यक्ति या समूह घुसपैठ करने में मदद करता है या धर्मांतरण की गतिविधियों में शामिल होता है, तो उन्हें सजा दी जानी चाहिए।
इसके अलावा, सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि राष्ट्रीय पहचान पत्र जैसे आधार कार्ड, वोटर आईडी, राशन कार्ड आदि के माध्यम से फर्जी दस्तावेजों की पहचान की जाए और ऐसे मामलों पर सख्त कार्रवाई की जाए। साथ ही, यह भी सुनिश्चित किया जाए कि इन दस्तावेजों का गलत इस्तेमाल करने वालों के खिलाफ कानून का पूरा अनुपालन हो।
निष्कर्ष
भारत में घुसपैठ और धर्मांतरण की समस्याएं गंभीर हैं, और इन्हें नजरअंदाज करना देश के भविष्य के लिए खतरनाक हो सकता है। अगर समय रहते इन मुद्दों पर कड़ी कार्रवाई नहीं की गई, तो न केवल हमारे सामाजिक ताने-बाने को नुकसान पहुंचेगा, बल्कि हमारे राष्ट्रीय सुरक्षा तंत्र को भी चुनौती मिलेगी। यह समय है कि सरकार और सभी संबंधित संस्थाएं इन समस्याओं के समाधान के लिए मिलकर काम करें और देश की सुरक्षा को सुनिश्चित करें।
भारत में घुसपैठ, भ्रष्टाचार और समाजिक समस्याओं का गंभीर संकट
भारत आज कई गंभीर समस्याओं से जूझ रहा है, जिनमें घुसपैठ, भ्रष्टाचार, धर्मांतरण, जनसंख्या विस्फोट और नशे की तस्करी प्रमुख हैं। ये समस्याएं न केवल देश की सुरक्षा के लिए खतरा पैदा कर रही हैं, बल्कि समाज की समरसता और विकास को भी बाधित कर रही हैं।
1. घुसपैठ और भ्रष्टाचार:
- भारत में घुसपैठ एक बड़ी समस्या बन चुकी है। विशेष रूप से असम में, जहां राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) का प्रयास किया गया था, घुसपैठियों ने भ्रष्ट सरकारी कर्मचारियों से मिलकर अपने नाम रजिस्टर में दर्ज करवा लिए। इसके परिणामस्वरूप, असम के नागरिकों का नाम हटा दिया गया और घुसपैठियों को नागरिकता मिल गई।
- घुसपैठियों के खिलाफ ठोस कानूनी कार्रवाई की जरूरत है। हम अभी तक घुसपैठ को देशद्रोह या संगठित अपराध नहीं मानते हैं, और न ही इसे राष्ट्र की सुरक्षा के लिए खतरा घोषित किया गया है।
- इस मामले में भ्रष्टाचार एक बड़ी बाधा है। सरकारी कर्मचारियों द्वारा घूस लेकर घुसपैठियों के नाम रजिस्टर में जोड़ने की घटनाएं सामने आई हैं। इन समस्याओं को रोकने के लिए कठोर कानून और भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की आवश्यकता है।
2. कानूनी प्रणाली और न्यायिक ढांचा:
- भारत में कानून और न्यायिक व्यवस्था में गंभीर समस्याएं हैं। कई बड़े घोटालों, जैसे 2जी घोटाला, कोयला घोटाला, और राशन कार्ड घोटाला, में कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। इनमें से अधिकांश मामलों में अपराधियों को सजा नहीं मिली है, जिससे कानून के प्रति विश्वास कम हो गया है।
- न्यायिक प्रणाली और कानून में सुधार के बिना, भ्रष्टाचार और अपराध में कमी लाना असंभव है। भारत में नशा तस्करी, मानव तस्करी और अन्य अवैध गतिविधियां जारी हैं क्योंकि न्यायिक प्रक्रिया में तेजी नहीं है और दोषियों को सजा नहीं मिलती।
3. धर्मांतरण और जनसंख्या विस्फोट:
- धर्मांतरण और जनसंख्या विस्फोट एक गंभीर संकट बन चुके हैं। विशेष रूप से, बड़े पैमाने पर होने वाले धर्मांतरण से न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक अस्थिरता पैदा हो रही है, बल्कि समाज में तनाव भी बढ़ रहा है।
- जनसंख्या विस्फोट के कारण देश के संसाधनों पर दबाव बढ़ रहा है, जिससे नागरिकों को बेहतर स्वास्थ्य, शिक्षा, और अन्य सुविधाएं मिल पाना कठिन हो रहा है।
4. नशे का खतरा और युवा पीढ़ी:
- आजकल भारतीय युवाओं के बीच ड्रग्स और अन्य नशीली दवाओं का उपयोग बढ़ रहा है। ड्रग्स के कारण न केवल उनकी शारीरिक और मानसिक सेहत पर बुरा असर पड़ रहा है, बल्कि इससे नपुंसकता जैसे गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं भी उत्पन्न हो रही हैं।
- इस प्रकार के नशे के कारण युवा वर्ग का विवाह से भागना, परिवार बनाने से मना करना और समाज से कटना एक सामान्य समस्या बन गई है। यह स्थिति राष्ट्र की भविष्यवाणी के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न कर रही है।
5. समाज के भीतर घुसपैठ और अराजकता:
- भारत में घुसपैठ, भ्रष्टाचार, और अवैध गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिए कठोर कानूनों की आवश्यकता है। यदि इन समस्याओं पर कड़ी कार्रवाई नहीं की जाती, तो देश में अराजकता और सामाजिक तनाव और बढ़ सकता है।
- समाज में असंतोष बढ़ने के साथ-साथ, यह आतंकवाद, धार्मिक उन्माद और हिंसा का कारण बन सकता है। इससे देश की संप्रभुता और सामाजिक संरचना पर खतरा उत्पन्न हो सकता है।
6. भारत में होने वाले अपराध और तस्करी:
- मानव तस्करी, चंदन तस्करी, और अन्य प्रकार की तस्करी भारत में एक गंभीर समस्या बन चुकी है। हाल ही में महाराष्ट्र में एक पीआईएल (पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन) दाखिल हुई जिसमें 1 लाख लड़कियों के गायब होने की बात सामने आई। इन लड़कियों को धर्मांतरण के लिए अपहरण कर लिया गया था।
- भारत में यह समस्या केवल बच्चों और महिलाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि कई राज्यों में आदिवासी और दलित बच्चों को भी किडनैप किया गया है और उनका अपहरण कर उन्हें कन्वर्ट किया गया है।
7. सुधार के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिए?
- कठोर कानून: देश में घुसपैठियों, भ्रष्टाचारियों और तस्करों के खिलाफ कठोर कानून और तेजी से न्यायिक प्रक्रिया की आवश्यकता है। एनआरसी, एनएसए और यूएपीए जैसे कानूनों को प्रभावी ढंग से लागू किया जाना चाहिए।
- शिक्षा और संस्कार: बच्चों में अच्छे संस्कारों का निर्माण करने के साथ-साथ उन्हें सिखाया जाना चाहिए कि कानून और न्याय का पालन करना कितना महत्वपूर्ण है। इससे भविष्य में सामाजिक समस्याओं को हल किया जा सकेगा।
- सुरक्षा और रक्षा: देश की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सशस्त्र बलों और पुलिस को सुदृढ़ करना जरूरी है। साथ ही, घुसपैठ और तस्करी जैसी समस्याओं से निपटने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
निष्कर्ष:
भारत में घुसपैठ, भ्रष्टाचार, और अन्य सामाजिक समस्याएं केवल प्रशासन की असफलता का परिणाम नहीं हैं, बल्कि यह देश में मजबूत और सख्त कानूनों की कमी का भी परिणाम है। यदि हम इन समस्याओं का हल चाहते हैं, तो हमें कानून को प्रभावी बनाना होगा, नागरिकों को जागरूक करना होगा, और न्याय व्यवस्था में सुधार करना होगा। केवल तब ही हम भारत को एक सुरक्षित, समृद्ध और न्यायपूर्ण देश बना सकते हैं।
भारत की अस्मिता: गुलामी की विरासत और हमारी स्वतंत्रता की असल स्थिति
हमारे देश में एक गहरी दुविधा है, जो आज भी हमें मानसिक रूप से गुलाम बनाए हुए है। हालाँकि आज़ादी के बाद हम कागज पर स्वतंत्र हो गए हैं, लेकिन हमारी असली स्वतंत्रता अभी भी हमें मिलनी बाकी है। हमारे समाज की डेमोग्राफिक संरचना, शिक्षा व्यवस्था, न्यायिक प्रणाली, और प्रशासनिक ढांचा सभी अब भी गुलामी की निशानियाँ प्रदर्शित करते हैं। हम आज भी अपने इतिहास और संस्कृति से पूरी तरह से अवगत नहीं हैं, और हमारे नेताओं ने हमें बांटने और हमारी अस्मिता को कमजोर करने का काम किया है।
राजनीतिक परिवर्तन का खोखलापन
अश्विनी जी का मानना है कि स्वतंत्रता के बाद कोई वास्तविक परिवर्तन नहीं हुआ है। केवल शासक बदले हैं, लेकिन व्यवस्थाएँ वही की वही हैं। उदाहरण के तौर पर, भारत में आज भी हमारे पुलिस और प्रशासन की व्यवस्था ब्रिटिश काल के ढांचे पर आधारित है। इस ढांचे में बदलाव लाने के बजाय, हमें सिर्फ नई-नई टर्म्स मिल गई हैं, लेकिन जड़ में कोई सुधार नहीं हुआ है।
वहीं, अश्विनी जी ने यह भी कहा कि हम जिन नेताओं को चुनते हैं, वे अक्सर हमें जाति, भाषा और क्षेत्र के आधार पर विभाजित करने का काम करते हैं। इससे हमारी मानसिकता को नुकसान पहुंचता है और हम एक सशक्त और संगठित राष्ट्र के रूप में उभरने के बजाय, अपने आप में बंटे रहते हैं। उन्होंने इस बात का उदाहरण दिया कि कैसे पंजाब और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में धार्मिक और सामाजिक असंतुलन बढ़ रहा है, जिसके पीछे योजनाबद्ध तरीके से काम किया जा रहा है।
हमारा इतिहास: छिपाए गए तथ्यों की सच्चाई
अश्विनी जी ने भारतीय इतिहास को नए दृष्टिकोण से देखने की आवश्यकता जताई। उन्होंने यह सवाल उठाया कि हमारे ऐतिहासिक स्थल और धार्मिक केंद्रों का नाम बदलने का उद्देश्य क्या था। मुगलों द्वारा भारतीय मंदिरों और धार्मिक स्थलों को तोड़ा गया और उनकी जगह मस्जिदें बनाई गईं। उदाहरण स्वरूप, उन्होंने अयोध्या, मथुरा, काशी, और जौनपुर जैसे स्थलों का नाम लिया, जिनका ऐतिहासिक महत्व था, और बताया कि इन जगहों का नाम बदलने के पीछे केवल सत्ता और सांस्कृतिक पहचान को मिटाने की योजना थी।
इसके अलावा, उन्होंने कुरान, बाइबिल, और वेदों में उल्लेखित स्थलों का उदाहरण दिया और यह पूछा कि क्यों उन स्थानों के नामों को बदला गया। उनका कहना था कि हमारे पुराणों और वेदों में वर्णित स्थानों के नाम आज भी विश्व में मौजूद हैं, लेकिन हमें उन्हें पहचानने और सम्मान देने में चूक हो रही है।
स्वतंत्रता और राष्ट्रीय अस्मिता
अश्विनी जी का यह भी मानना है कि भारतीय समाज को मानसिक रूप से गुलामी से मुक्त करने की आवश्यकता है। उन्होंने भारत के संविधान में लिखे शब्द 'संप्रभुता' पर ध्यान केंद्रित करते हुए कहा कि हम आज भी मानसिक गुलामी की स्थिति में हैं। उन्होंने उदाहरण दिया कि आज भी हमारी शिक्षा व्यवस्था, न्यायिक व्यवस्था, और प्रशासनिक प्रणाली में सुधार की आवश्यकता है, ताकि हम पूरी तरह से स्वतंत्र और आत्मनिर्भर राष्ट्र बन सकें।
भविष्य की दिशा: एकजुटता और संघर्ष
हमें एकजुट होकर अपने समाज और राष्ट्र को सुधारने की दिशा में काम करना होगा। उन्होंने कहा कि जाति, धर्म, और क्षेत्र की सीमाओं से ऊपर उठकर हमें एक समग्र दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। उनका मानना था कि यदि हम अपने ऐतिहासिक और सांस्कृतिक गर्व को समझेंगे और समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए कदम उठाएंगे, तो हम एक सशक्त राष्ट्र के रूप में उभर सकते हैं।
निष्कर्ष
यह बात भारतीय समाज के अंदर गहरी जड़ों तक पैठी हुई समस्याओं पर प्रकाश डालता है। उनके विचारों में यह संदेश है कि आज भी हम स्वतंत्र नहीं हैं, क्योंकि हमारी व्यवस्था, संस्कृति और पहचान को अभी भी बाहरी ताकतों द्वारा प्रभावित किया जा रहा है। उनके अनुसार, वास्तविक स्वतंत्रता तभी संभव है जब हम अपनी पहचान, संस्कृति, और इतिहास को पूरी तरह से समझें और सम्मान दें।
अंत में, यह जरूरी है कि हम एकजुट हों और अपने राष्ट्र को सशक्त बनाने के लिए काम करें। ऐसा करना केवल हम सभी के सामूहिक प्रयास से ही संभव है, और यही समय की आवश्यकता भी है।

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