मन के छ दुश्मन से कैसे लड़े | हम अक्सर कहते हैं कि हमारा हीं,सबसे बड़ा दुश्मन कोई बाहरी व्यक्ति नहीं बल्कि हम खुद हैं। लेकिन यह कैसे संभव है? इसका जवाब हमारे मन में छिपा है। हमारे मन में छह शक्तियां हैं - काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार और मत्सर। ये शक्तियां अगर नियंत्रण से बाहर हो जाएं तो हमें बर्बाद कर सकती हैं। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि जो व्यक्ति अपने मन पर नियंत्रण रख लेता है वह अपना मित्र है और जो नहीं रख पाता वह अपना सबसे बड़ा शत्रु है।
मन के छ दुश्मन और इंद्रियां:
हम अक्सर कहते हैं कि हमें आजादी चाहिए, जो मन करता है वह करते हैं। लेकिन यह सच नहीं है। ऐसा करने से हम अपने मन के गुलाम बन जाते हैं। हमें अपने मन और इंद्रियों के स्वामी बनना चाहिए।
मन के छ दुश्मन विकारों का दोहरा स्वरूप:
विकारों की तुलना दवा से की जा सकती है।
कम मात्रा में ये दवा का काम करते हैं लेकिन ज्यादा मात्रा में ये जहर का काम करते हैं। इसी तरह, अगर विकारों को नियंत्रित किया जाए तो ये हमारे जीवन को बेहतर बना सकते हैं लेकिन अगर इन्हें नियंत्रित नहीं किया जाए तो ये हमें और दूसरों को बर्बाद कर सकते हैं।
गीता का संदेश:
गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि जो व्यक्ति अहंकार, काम और क्रोध से भरा हुआ है वह दूसरों को हानि पहुंचाता है और परमात्मा से दूर होता है। हमें इन विचारों पर नियंत्रण रखना चाहिए और किसी को भी नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए।
मन के छ दुश्मन में काम विकार:
काम का मतलब सिर्फ शारीरिक संबंध नहीं है। इसमें प्यार, वफा, विश्वास और सम्मान भी शामिल है। लेकिन अगर काम विकार बढ़ जाए तो लोग छेड़छाड़, एसिड अटैक और रेप जैसे अपराध कर सकते हैं। इसलिए इस पर नियंत्रण रखना बहुत जरूरी है।
क्रोध विकार: विनाश का बीज
क्रोध एक ऐसी भावना है जो हमें बहुत नुकसान पहुंचा सकती है। जब क्रोध बढ़ जाता है तो लोग लड़ाई-झगड़े, कहासुनी और यहां तक कि मारपीट पर उतर आते हैं। क्रोध पर नियंत्रण रखना बेहद जरूरी है।
मन के छ दुश्मन में लोभ: धन का नशा
लोभ के कारण लोग चोरी, छल, कपट और रिश्वतखोरी जैसे अपराध करते हैं। धन के लालच में लोग बड़े-बड़े नुकसान उठा लेते हैं। हमें मेहनत से ईमानदारी से धन कमाना चाहिए और जो मिला है उसमें संतुष्ट रहना चाहिए।
मोह: लगाव का बंधन
मोह का मतलब किसी चीज या व्यक्ति से अत्यधिक लगाव है। यह लगाव धन, संपत्ति, लोगों या रिश्तों से हो सकता है। मोह के कारण हम दूसरों से अपेक्षाएं रखते हैं और जब वे हमारी अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरते तो हमें दुख होता है।
अहंकार: अहं का बोझ
अहंकार का मतलब खुद को दूसरों से श्रेष्ठ समझना है। अहंकार के कारण हम दूसरों का अपमान करते हैं और उनके साथ बुरा व्यवहार करते हैं। हमें हमेशा विनम्र रहना चाहिए और दूसरों का सम्मान करना चाहिए।
मत्सर: ईर्ष्या की आग
मत्सर का मतलब दूसरों की सफलता पर जलना है। मत्सर के कारण हम दूसरों को नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं। हमें दूसरों की सफलता पर खुश होना चाहिए और उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए।
मन के छ दुश्मन को नियंत्रण जीवन का संतुलन
हमें अपने जीवन में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को संतुलित रखना चाहिए। धर्म का मतलब अपने कर्तव्यों को निभाना है, अर्थ का मतलब अपनी आवश्यकताओं को पूरा करना है, काम का मतलब एक सुखी वैवाहिक जीवन है और मोक्ष का मतलब मोक्ष प्राप्त करना है।
निष्कर्ष:
हमारे मन में छिपे हुए विकार ही हमारे सबसे बड़े दुश्मन हैं। इन पर नियंत्रण रखकर हम एक शांतिपूर्ण और खुशहाल जीवन जी सकते हैं। हमें हमेशा याद रखना चाहिए कि हम अपने मन के मालिक हैं, गुलाम नहीं।
बुढ़ापे में साधना: एक नया दृष्टिकोण
अक्सर लोग यह सोचते हैं कि बुढ़ापे में साधना करना मुश्किल होता है। वे यह मानते हैं कि युवावस्था में ही साधना शुरू करनी चाहिए थी। लेकिन यह एक भ्रम है। सच्चाई यह है कि किसी भी उम्र में साधना शुरू की जा सकती है।
लड़ने से नहीं, समझने से
कई लोग साधना को एक लड़ाई मानते हैं। वे अपने मन के विकारों से लड़ते हैं, लेकिन यह लड़ाई कभी नहीं जीती जा सकती। क्योंकि जब हम किसी चीज से लड़ते हैं, तो हम उस चीज को और अधिक शक्ति देते हैं। हमें अपने मन के विकारों से लड़ने की बजाय उन्हें समझने की कोशिश करनी चाहिए।
क्रोध: एक अवसर
क्रोध एक ऐसा विकार है जो सभी को प्रभावित करता है। जब हमें क्रोध आता है, तो हमें अपने आप से यह पूछना चाहिए कि हम क्यों क्रोधित हो रहे हैं। हमें अपने क्रोध को देखना चाहिए और उसे समझने की कोशिश करनी चाहिए। हमें क्रोध को दबाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, बल्कि उसे स्वीकार करना चाहिए।
साक्षी बनना
जब हम अपने क्रोध को देखते हैं, तो हम एक साक्षी बन जाते हैं। एक साक्षी वह होता है जो किसी चीज को बिना किसी निर्णय के देखता है। जब हम अपने क्रोध को बिना किसी निर्णय के देखते हैं, तो क्रोध अपने आप कम हो जाता है।
ध्यान: एक शक्तिशाली उपकरण
ध्यान साधना का एक शक्तिशाली उपकरण है। ध्यान के माध्यम से हम अपने मन को शांत कर सकते हैं और अपने भीतर की शांति को खोज सकते हैं। ध्यान करने से हम अपने विकारों पर नियंत्रण पा सकते हैं और एक अधिक संतुलित जीवन जी सकते हैं।
निष्कर्ष
बुढ़ापे में साधना करना कभी भी देर नहीं होती है। हमें अपने मन के विकारों से लड़ने की बजाय उन्हें समझने की कोशिश करनी चाहिए। हमें ध्यान के माध्यम से अपने भीतर की शांति को खोजना चाहिए। जब हम अपने भीतर की शांति को खोज लेते हैं, तो हम जीवन के सभी उतार-चढ़ावों का सामना करने के लिए तैयार हो जाते हैं।
मुख्य बिंदु:
- बुढ़ापे में साधना शुरू करना कभी भी देर नहीं होती है।
- विकारों से लड़ने की बजाय उन्हें समझने की कोशिश करनी चाहिए।
- क्रोध को स्वीकार करना और उस पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है।
- ध्यान साधना का एक शक्तिशाली उपकरण है।
- भीतर की शांति खोजने से जीवन के उतार-चढ़ावों का सामना करने में मदद मिलती है।
यह लेख उन लोगों के लिए उपयोगी हो सकता है जो बुढ़ापे में साधना शुरू करना चाहते हैं या जो अपने जीवन में शांति और संतुष्टि चाहते हैं।

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